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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/२७७

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मेरी आत्मकहानी
 


सभा की इस परिस्थिति और आर्थिक अवस्था को देखकर बाबू गोपालदास ने, जो सभा के प्रारंभ से ही, ३५ वर्ष तक, सहायक मंत्री थे, अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। बाबू गोपालदास ने सभा की अमूल्य सेवा की है। उनकी उपस्थिति में हम लोगों को कभी इस बात की चिंता नहीं हुई कि सभा का एक पैसा भी कहीं चला जायगा, पर किसी-किमी कार्यकर्ता का अपने निजी खर्च के लिये अमानत में लिखाकर रुपया ले लेना उन्हें अरुचिकर या। वे इनको रोक भी नहीं सकते थे, क्योंकि आज्ञा के अनुसार कार्य करना उनका कर्तव्य था। उन्होंने मुझसे स्पष्ट कहा था कि यह स्थिति मेरे संभाले न संभालेगी और इसके लिये मुझे कदाचित् जेल तक जाना पड़े। कम से कम मेरी पिछली सव सेवाएँ भूलकर मुझे घोर लाछन लगेगा।' इन विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और वह १६ सितंबर १९३३ के अधिवेशन में स्वीकृत भी हो गया। ३५ वर्ष सभा की सेवा करके वाबू गोपालदास सभा से अलग हुए। सभा को कोरे धन्यवादों के अतिरिक्त उनके सम्मान के लिये कुछ करना चाहिए था।

(१४) उन सब घटनाओं का प्रभाव मेरे मन और शरीर पर बहुत बुरा पड़ा। साथ ही एक और चिंवा मन को व्याकुल करती रहती थी। ममा पर इन समय कई इजार का ऋण हो गया था। यह शृण कहीं बाहर से नहीं लिया गया था। सभा को ही मिन्न-मिन्न निधियों के रुपए दूसरे कामों में खर्च हो गए थे। कला भवन, द्विवेदी-अभिनंदन, सूनागर आदि कार्यों में अनुमान से बहुत खर्च