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मेरी आत्मकहानी
 

की आय ३३९) से घटकर २२७)हो गई। कोई नया कार्य इस वर्ष नहीं हुआ, यहाँ तक कि सभा के अधिवेशन भी बहुत कम हुए। सच बात तो यह है कि मत्रित्व पाने का उद्योग सभा की शुभ-कामना से प्रेरित नहीं था। वह तो ईर्ष्या-द्वेष के भावो से प्रभावित था। कुछ महीनों तक यह क्रम चला। पर जब सभा के टूट जाने की आशंका हुई तो वाबू राधाकृष्णदास, बाबू कार्तिकप्रसाद, पंडित अगन्नाथ मेहता आदि ने मिलकर बाबू देवकीनदन से कहलाया कि या तो आप मंत्रित्वपद से त्याग-पत्र दे दीजिए या हम लोग सभा करके दूसरा मत्री चुनेंगे। बाबू देवकीनंदन खत्री ने त्याग-पत्र देने में ही अपनी प्रतिष्ठा समझी। अस्तु, अब बाबू राधाकृष्णदास मंत्री चुने गए। मंत्रित्व से मेरा कोई साक्षात् संबध न रहने पर भी मैं बाबू राधाकृष्णदास की निरतर सहायता करता रहा।

एक काम जो इस वर्ष में हुआ वह उल्लेख योग्य है। मेरे उद्योग से बाबू गदाधरसिंह ने, जो अब पेंशन लेकर काशी आ गए थे, अपना आर्यमापापुस्तकालय सभा के नागरी-भंडार मे संमिलित कर देने का निश्चय किया। इसके लिये एक उपसमिति बनाई गई जिसके स्थायी मत्री बाबू गदाधरसिंह चुने गए। अब सभा का कार्यालय नेपाली खपरे से उठकर बुलानाले पर आया और पुस्तकालय नित्य निश्चित समय पर खुलने लगा।

इस वर्ष मेरा पहला मौलिक लेख शाक्यवशीय गौतम वुद्ध के नाम से नागरी-प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित हुआ। अब तक जो लेख छपे थे वे अनुवाद थे।