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मेरी आत्मकहानी
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इस वर्ष के अंत और पााँचवें वर्ष के आरंभ में २८ जुलाई १८९७ को सभा का वार्षिकोत्सव मनाया गया। इसके सभापति काशी के कलक्टर मि॰ काब थे। इन्होंने अपने अतिम भाषण में नागरी-अक्षरों की बड़ी निंदा की। यह मुझसे न सहा गया। मैने उन्हें धन्यवाद देते उनके कथन का खंडन किया। किसी ने यह समाचार जाकर मेरे चाचा साहब को दिया। वे बहुत घबराए। सभा में आने का तो उनका साहस न हुआ पर घर पर जाकर वें बहुत बिगड़े। कहने लगे कि यह लड़का अपने मन का हुआ जाता है। किसी दिन यह आप तो जेल जायगा ही हम लोगों को भी हथकड़ी-वेड़ी पहना देगा। उस समय की स्थिति कुछ ऐसी ही थी। लोग अँगरेजो से बड़े भयभीत रहते थे। उनकी बात का खंडन करना तो असंभव बात थी। पर अब स्थिति में बड़ा परिवर्तन हो गया है।


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अदालतों में नागरी

पाँचवें वर्ष से सभा उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हुई। सन् १९०० वक पहुँचते पहुँचते उसने कई उपयोगी कार्य आरंम कर दिये और बहुत कुछ प्रतिष्ठा तथा सम्मान प्राप्त किया। सबसे महत्त्व का कार्य अदालतो मे नागरी-अक्षरों के प्रचार का उद्योग था। पंडित मदन-मोहन मालवीय ने Court Character and Primary Education in the N.W Provinces and Oudh घोर परिश्रम तथा प्रशंसनीय लगन के साथ तैयार कर लिया था। इसका संक्षेप

फा॰ ३