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मेरी आत्मकहानी
 

मैंने ‘पश्चिमोत्तर प्रदेश तथा अवध में अदालती अक्षर और प्राइमरी शिक्षा’ नाम से लिया था जो नागरी-प्रचारिणी पत्रिका में छपा और जिसकी अलग प्रतियाँ छाप कर बाँटी गई। मालवीय जी ने इस संक्षेप को देखकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की थी और सुंदर वाक्यो में हम लोगो का उन्माह बढाया था। अब मेमोरियल देने की तैयारी हुई। एक डेपुटेशन बनाया गया जिसमें प्रांत भर के प्रमुम्ब प्रमुख १७ व्यक्ति थे। इस डेपुटेशन के द्वारा २ मार्च सन् १८९८ को इलाहाबाद के गवर्नमेट हाउस में सर ऐटोनी मेकडानल को मेमोरियल दिया गया। मेमोरियल में मुख्यत यह बात की गई थी कि अदालतों में नागरी-अक्षरो का प्रचार न होन से प्रजा, विशेषकर ग्रामीण प्रजा, को बड़ी असुविधा और कष्ट होता है तथा आरभिक शिक्षा के प्रचार में बाधा उपस्थित होती है।

उत्तर मे सर ऐटोनी ने विषय की गुरुता का स्वीकार करते हुए कहा कि “आप लोग जिस परिवर्तन के लिए प्रार्थना करते हैं वह वास्तव में उस भाषा का परिवर्तन नहीं है जो हमारी अदालतो और सरकारी कागजो मे वरती जाती है। आप लोग उन अक्षरों के परिवर्त्तन के लिए प्रार्थना करते है जिनमे वह भाषा लिखी जाती है। वह भाषा जो हमारी अदालतो और सरकारी कागजों में लिखी जाती है कठिन और फारसी शब्दो से पूर्ण हो सकती है और उसके सरल करने का उद्योग आवश्यक हो सकता है, पर वास्तव में वह भाषा हिंदी है, जिसे इन प्रातों की प्रजा का बहुत बड़ा अंश बोलता है। परंतु यदि हमारी अदालतो की भाषा हिंदी है तो जिन अक्षरो में वह