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मेरी आत्मकहानी
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लिखी जाती है वे फारसी है और आप लोगो का यह प्रस्ताव है कि फारसी के स्थान पर नागरी-अक्षरो का (आप लोग कैथी-अक्षरों को पसंद नहीं करते) जिस में हिंदी साधारणत लिखी जानी चाहिए, प्रचार किया जाय। इसमे कोई संदेह नहीं कि इस प्रस्ताव के पक्ष मे बहुत कुछ कहा जा सकता है। इन प्रांतो मे चार करोड़ सत्तर लाख मनुष्य बसते हैं और जो अनुसधान-प्रसिद्ध भाषातत्त्व-वेत्ता डाक्टर ग्रियर्सन प्रत्येक जिले में भाषाओ की जाँच के संबंध में करक्षरहे हैं, उससे यह प्रकट होता है कि इन चार करोड़ सत्तर लाख मनुष्यों में से चार करोड़ पचास लाख मनुष्य हिंदी या उसकी कोई.बोली बोलते हैं। अब यदि चार करोड पचास लाख मनुष्य उस भाषा को लिख भी सकते जिसे वे बोलते है तो निस्सदेह फारसी के स्थान पर नागरी-अक्षरों का प्रचलित किया जाना अत्यत ही आवश्यक होता, पर इन चार करोड़ पचास लाख मनुष्यो मे से तीस लाख से कुछ कम लोग लिख और पढ़ सकते हैं और इन शिक्षित लोगो मे से, यदि मैं उन्हें ऐसा कह सकूँ, तो एक अच्छा अंश मुसलमानो का है जो उर्दूं बोलते और फारसी-अक्षरो का व्यवहार करना पसंद करते हैं।” इसके पश्चात प्राइमरी शिक्षा के बढ़ाने और उसके साथ ही नागरी या कैथी जाननेवालो की संख्या के बढ़ाने तथा सरकारी कर्मचारियों के नागरी जानने की आवश्यकता का उल्लेख करके श्रीमान् ने कहा, “मेरे इस कहने से आप लोग समझ सकते हैं कि यद्यपि मैं नागरी-अक्षरों के विशेष प्रचार के पक्ष में हूँ, पर मैं इस बात का कह देना उचित समझता हूँ कि जितनी आप लोग समझते