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मेरी आत्मकहानी
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किया है। इसका मुख्य कारण यह है कि अदालतों में नागरी-प्रचार के लिये बहुत वर्षों से उद्योग हो रहा था। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हंटर कमिशन के समय में इस कार्य के लिये उत्कट प्रयत्न किया था, पर उन्हें सफलता प्राप्त नही हुई थी। इस उद्योग से अब की सफलता का बीजारोपण हो गया। इसलिए इस युग-प्रवर्तक घटना का पूरा उल्लेख हो जाना आवश्यक है। हम उद्योग के संबंध में कुछ और बातें हैं जिनका अभी तक कही उल्लेख नही हुआ है। अतएव, उनको यहाँ संक्षेप में कह देना उचित जान पढता है।

जब इस मेमोरियल के देने की तैयारी हो रही थी तब मैने डाक्टर ग्रियर्सन से पत्र-द्वारा यह प्रार्थना की थी कि वे किसी प्रसिद्ध समाचार-पत्र में नागरी-प्रचार के पक्ष में अपनी सम्मति प्रकाशित कर दे। उन्होंने उस समय तो कोई उत्तर नहीं दिया पर सर ऐटोनी के उत्तर दे लेने पर उन्होंने लिया कि “यद्यपि सामाचार-पत्र में नागरी के पक्ष में कुछ लिखने की तुम्हारी प्रार्थना को मै स्वीकार न कर सका, पर अब तुमको मालूम हो गया होगा कि परोक्ष रूप से मैंने तुम्हारे पक्ष का समर्थन किया है जिनका प्रभाव समाचार-पत्र मे लेख लिखने की अपेक्षा कहीं अधिक होगा।”

जिस दिन मेमोरियल दिया गया उस दिन बाबू राधाकृष्णदास की तथा मेरा प्रबल इच्छा थी कि गवर्नमेंट हाउस में जाकर इस दृश्य को देखे। मुंशी गंगाप्रसाद वर्मा की कृपा मे हम लोगों को प्रेस-पास मिल गये और हम लोग जा सके।

वहाँ से लौटने पर बाबू राधाकृष्णदास ने त्रिवेणी मे स्नान करके