सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४१ नांबरी सामान गारपणाम और मैं मनगंगा पर्ग प्रयाग गए थे। यानाही याग में मार मिनी मैरानन म प्रांत के पतिमा मिना लगा है फि गगन TEST AIR मम्गति जानने कन्छ। को प्रादमी इन हिनंगी नाग-नार. 4-1 में जनता का यहमन स्त्र ने बत तिचार के 'जनतर या निश्चय पुष्पा कि मैं लगाना पर पाबा पीर लग्पनऊ से चालू मानधनांनी या प्राण्यलोन यो नार ग्यिा गया और मर्ग गाता गंगन लगी। ग गधारपणास ने अपना नौर maiगुनको चौर भारतीभवन के मस्थापक घावू अजमोहनमान में १०) धार लेकर गाना-न्यय के लिये मुगं दिया गया। मैं लन्ना लिये धन पणा मंगन पर पा० कृष्ण- अलय या नितं. पर न जाना बांगर न किया। उस रात को लगनादर गया श्री धर्मा जी से समझाता और उत्माहित रगना गान में वे मयार हो गए और दूसरे दिन हम लोग शाजापुर के लिंग चल पडे। वहाँ म घग्ली, मुरादाबाद, सहारन- पुर. मेरठ, मुजफफरनगर, अलीगढ़, श्रागग, मथुग होते हुप कोई एक महीने में घर लौटे। मन न्यानो में हम लोग प्रमुख प्रमुख व्यनियों में मिने अपना उदृश्य घताया और नागरी के प्रचार और मान के लिये एक मंटन स्थापित किया। यह यात्रा में .