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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/५०

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मेरी आत्मकहानी
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से केवल एक को जानता होगा दूसरी को नहीं, उसे नियुक्त होने की तारीख के एक वर्ष मे दूसरी भाषा को जिसे वह न जानता होगा भली भांति सीख लेना होगा।

इस प्रकार उद्योग में सफलता प्राप्त हुई। गवर्नमेट ने तो अपना कर्त्तव्य पूरा कर दिया पर हम लोगो मे जो शिथिलता और स्वार्थपरता भरी हुई है उसके कारण हम इस आज्ञा से यथेप्ट लाम अभी तक नहीं उठा सके हैं। इसमे सदेह नहीं कि कुछ वकीलो, रईसों, जमीदारो तथा अन्य लोगों ने अपना सब काम नागरी में करने की अपूर्व दृढ़ता दिखाई है, और कुछ राजो ने अपने राज्य के दफ्तरो और कचहरियो मे नागरी का पूर्ण प्रचार करके प्रशंसनीय कार्य किया है, पर अभी बहुत कुछ करने को बाकी है। इस समय तो हम अपने घर की सुध भूल कर मद्रास और आसाम तक दौड़ लगाने का प्रयत्न कर रहे हैं पर जब तक चिराग तले अँधेरा बना रहेगा तब तक स्थिति के पूर्णतया सुधरने की बहुत कम आशा है।

जैसा कि मै पहले लिख चुका हूॅ, मार्च सन् १८९८ मे मेरी नियुक्ति सेट्रल हिंदू स्कूल में हुई। पहले मैं असिस्टेंट मास्टर हुआ। कुछ दिनों पीछे असिस्टेंट हेड मास्टर बनाया गया। मुझे भली भाँति स्मरण है कि एक दिन प्रातःकाल बाबू सीताराम शाह अपने बड़े भाई बाबू गोविदास का यह सदेशा लेकर आए कि यदि हिंदू स्कूल में काम करना चाहते हो तो आरभ मे ४०) रु० मासिक वेतन मिलेगा और आज तुम इस काम को आरभ कर सकते हो। मैने इस प्रस्ताव को धन्यवाद के साथ स्वीकार किया और उस दिन