पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/५१

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मरीनालाहानी जार कार्यभार ले लिया। मसलपलटमान्टर मिस्टर नवरी हुए। वे दक्षिण-अकिरा में भारतवर्ष में श्रम । वे अपने कार्य में दन पर उन शिष्टना चार मंशनि प्रमिस एच बुनगे-मी थी और इससे वे लोगों का नानी नमान श्रजनन पर सके। धीरे धीरे यह यान प्रबरनटी पर भी प्रस्ट हो गई और उसने उद्योग करके उन्हें लपनऊ के गर्नमेंट जुबिनी स्कूल की हेड मास्टरी दिला दी। इसके अननर मिस्टर जीन भाग्नडेल हेड माटर निरत न। वे एक मंञान मार एल के मपन्न व्यक्ति थे। शिटता और सदाचार तथा नति के विचार में वे पादर्श कई जा मरने है। अाजकल वे मगम में गगन में धीर चियानोफिल लोनाइटी के प्रेमिडेंट है। इनके सर्व-कान में स्कूल ने बड़ी उन्नति की और उमस यश चारों ओर फैल गया। मिस्टर पारनडेल ने नुमते स्पष्ट कर दिया था कि मेरा काम पढाना-लिम्पाना नहीं है और न स्कूल का प्रतिदिन का कार्य करना है। यह मत्र तुमको करना होगा और में केवल इस उद्योग में लगा एंगा कि भारतीयों के हृदय में मेरे तया ब्रिटिश जाति के लिये स्नेह और संमान हो। ऐसा ही हुआ। वे भारतीयों के अपमान को नः सह सक्ने ये और सदा उना समयन करने को उद्यत रहते थे। इस कार्य में गवर्नमेंट के अधिकारियों से उनसे मुठभेड़ भी हो गई। अस्तु. कूल का सव काम मेरे अधिसर में रहा। इसमें कई कठिनाइयाँ भी हुई पर वे सुलमती गई । इस प्रकार कई वर्षों तक राम चलवा रहा। सन् १८९८ ९९ और १९०० में समा ने में महत्वपूर्ण