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मेरी आत्मकहानी
 

शब्द के लिये हिंदी-शब्द चुनने का काम भिन्न भिन्न व्यक्तियों को दिया गया। इस प्रकार शब्द-संग्रह हो जाने पर वे अलग अलग पुस्ताकार छापे गए और विचार तथा विवेचन के लिये भिन्न भिन्न विद्वानों के पास भेजे गए। इसके अनतर पंडित माधवराव सप्रे बम्बई तथा पूना की पोर ओर और मैं कलकत्ते की ओर गया। इन तीनों स्थानों के विशिष्ट विशिष्ट विद्वानों से मिलकर परामर्श किया गया और उनकी समति तथा सहानुभूति प्राप्त की गई। जब मानों शास्त्री के शब्दो का संग्रह छप गया तब उनके दोहराने के लिये आयोजन किया गया। मध्य प्रदेश विहार सयुक्त प्रदेश तथा पंजाब के शिक्षा-विभागों से सहायता माँगी गई। उन सबने दोहराने के काम के लिये अपने अपने प्रतिनिधि भेजने का वचन दिया और एक समिति इस काम को करने के लिये नियत हुई। इसका अधिवेशन २१ सितम्बर १९०३ पो काशी में आंरभ हुआ। इसमें निम्न- लिखित महाशय समिलित हुए―पंडित विनायकराव―जबलपुर, लाला खुशीराम―लाहौर लाला भगवतीसहाय―बाँकीपुर, पंडित माधवराव सप्रे―नागपुर, महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी―काशी, बाबू गोविंददास―काशी बाबू भगवानदास―काशी, बाबू दुर्गाप्रसाद―काशी और मैं। इस समिति के अधिवेशन २९ सितंबर तक होते रहे। समिति ने इस कार्य के लिये निम्नलिखित सिद्धात स्थिर किए।

(१) पारिभाषिक शब्दों को चुनने के लिये उपयुक्त हिंदी-शब्दों को पहला स्थान दिया जाय।