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मेरी आत्मकहानी
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(२) इन शब्दों के अभाव में मराठी, गुजराती, बँगला और उर्दू के उपयुक्त शब्द ग्रहण किए जायें।

(३) इनके अभाव मे पहले संस्कृत के शब्द ग्रहण किए जायें, तब आँगरेजी के शब्द रखे जायँ और अंत में संस्कृत के आधार पर नए शब्द निर्माण किए जायँ।

इन सिद्धांतो को सामने रखकर भूगोल, गणित, ज्योतिष और अर्थशास्त्र के शब्द दोहरा कर ठीक किए गए। दार्शनिक शब्दो को दोहरा कर ठीक करने के लिये बाबू भगवानदास, बाबू इंद्रनारायण-सिंह, बाबू वनमाली चक्रवर्ती तथा पंडित रामावतार पांडे की एक उपसमिति बनाई गई और अर्थशास्त्र के बचे शब्दो को दुहराने के लिये पंडित माधवराव सप्रे, बाबू गोविंददास और मेरी एक उप-समिति बनाई गई।

इन सब कामो के हो जाने पर बड़ी समिति का दूसरा अधिवेशन २७ दिसम्बर १९०३ को आरंभ हुआ और वह ८ जनवरी सन् १९०४ तक चलता रहा। इसमे निम्नलिखित महाशय संमिलित हुए―प्रोफेसर टी० के० गब्बर-बंबई, प्रोफेसर अभयचरण सान्याल―काशी, प्रोफेसर एन० वी० रानाडे―बंबई, लाला खुशी― राम―लाहौर, बाबू भगवानदास―काशी, महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी―काशी, बाबू वनमाली चक्रवर्ती ―कलकत्ता, पंडित रामावतार पांडे―काशी, बाबू भगवतीसहाय―बॉकीपुर, बाबू ठाकुरप्रसाद―काशी, बाबू दुर्गाप्रसाद―काशी और मैं। इन अधिवेशनों में दोहराने का काम समाप्त हुआ और जो थोड़ा-सा