पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/७३

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६६ मेरी भालकहानी उसके देखने से प्रकट होगा कि प्रश्न १.४ ओर ५ का संबंध लेख- प्रणाली और शेप प्रनों का संबंध लिपि-प्रणाली से है। अतएव, पहले लेख-प्रणाली के संबंध में उक्त रिपोर्ट से अंश घृत करता हैं। 'हिंदी भाषा के ग्रंथो तथा कवियों का पता एक सहन वर्ष से हले का नहीं लगता, परतु जो पता लगता है उसमे भी प्रयो का वया अभाव है। गद्य के प्राचीन प्रय न देखने में आते हैं और न नने में, और वो कहीं वैद्यक तया धर्मसंबंधी विषयों आदि के प्रयों की टीकाएँ मिल भी जाती हैं तो उनकी मापा टूटी-फूटी हिंदी या जभाषा के अतिरिक्त दूसरी देख नहीं पड़ती। इन्हीं कारणों से नापा-तत्त्ववेत्ताओं ने यह मान लिया है कि वास्तव में वर्तमान हेमोगा लेख-प्रणाली सन् १८००ई० में पंडित लल्लूलाल के प्रेम- सागर से प्रचलित हुई। इसके अनंतर इस प्रणाली का कुछ कुछ प्रचार होता रहा परतु भारतेंदु के समय में यह परिपत और प्रसार- गुण-संपन्न हुई। गद्य की उत्पत्ति होते ही उसके लेखक भी हो गए और उन लोगों ने अपनी अपनी रुचि के अनुसार हिंदी लिखना प्रारम किया। यह देखकर हिंदी के युरोपीय विद्वानों ने विचार करना प्रारंभ किया कि इस भाषा के लिखने में शब्दों की सहायता फारसी से ली जाय या सस्कृत से। इन विद्वानों में से प्रधान मगशय वीम्स और पाउस ये और ग्रह-विवाद सन १८६९-50

  • नवीन अनुसंधानों ने सदन मिश्र, स्याउल्ला खां तथा सदानुखराय

आदि प्राचीन गद्य-लेखकों का भी पता लगा है जिनमें सदासुखराप उबले पुराने और सर्वश्रेष्ठ शत होते हैं।