सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६८ मंगनालकहानी उनी भाषा में सामन पं. शानभाग र माया कटनगी। बैंमही यदि म मागयल या अन्य मानते जिना युरोपीय लोगों के गण इस रंग में प्रगर या तो उन्हें अवश्यमंत्र युरोपीय भाषाओं के मेन गुन लेना पड़ेगा और यदि उनसे विदशीव गमति नो उनी भाग सी होगी कि जिम मममन नि पाठक उसी में पान होगा। "इति म मम यान की पूर्णतया सिंह रग्ना है कि मार में मय जातियां री भाषा और नन्नान पर उन 'न्य जाति का पूर्ण प्रभाव पा

जिनमे किली नदिमी गति में नरा युद्ध घनिष्ठ सय जाता है। या सत्रय प्राय दो मा मना- एक तो जब क जाति दूनगे जाति को पजन फ उन देश फा शामन काने लगती है. दून जब दी जानियों में पाम व्यापार का सयध हो जाता है। इन प्रसा के मयधनने पर परम्पर शो का हेरफेर होने लगता है जो प्राकृतिक नियमानुसार पेशन गाल पार अपना रूप सिंचित परिवर्तित करके वय उस भाषा में मिल जाते जो उसके शब्द माने जाते हैं. यद्यपि उनकी उत्पनि के विषय मे यही कहा जाता है कि ये शब्द अमुक भाषा के हैं। इस प्रकार से जिस भाषा में शव मिल जाते हैं उम भापा की कुछ अप्रतिष्ठा नहीं मानी जावी। भारतवर्ष के इतिहास पर ध्यान देने से यह मस्ट होता है कि बहुत प्राचीन काल से यई हिदुओं का राज्य था। फिर मुसलमानों ने अपना पातक जमाया और उनके पोट अंगरेजों ने