पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/८३

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JE मेरी आत्मकहानी "भव यदि दूसरे प्रकार के शब्दो के विषय में यह सम्मति दी गई कि इनका प्रयोग साधारणत कविता में मार्जनीय है पर गद्य में इनका प्रयोग उचित नहीं है। कवि निरंकुश होते हैं। उनको नियमबद्ध करना उचित नहीं है। इस बात का निर्णय उनके रसगत भाव और योजना पर निर्भर है।" यहाँ तक लेख-प्रणाली के विषय में विचार किया गया। लपि-प्रणाली के संबंध में विचार कर यह सम्मति दी गई कि विम- क्तियां समा शब्दो से अलग और सर्वनाम शब्दो से मिलाकर लिखनी चाहिएँ। इस विषय का विवेचन मैंने किंचित् विस्तार के साय अपने "भापा-विज्ञान" नामक प्रथ में किया है। अतएन उसके संबंध में मेरे विचारों का बान उस प्रथ को देखने से हो सकता है। 'औ' और 'और आदि शब्दो के विषय में यह कहा गया कि 'औ'. सयोजन तथा 'और' सयोजक और सर्वनाम दोनों है। पहल का प्रयोग पद्य मे होना चाहिए और दूसरे का गद्य और पद्य दोनो में। पामवर्ण के विषय में यह बात उचित ससमी- गई कि जहाँ तक समव हो, विंदु से पचम वर्ण का काम लिया जाय, पर पंचम वणे का प्रयाग भी व्याकरण-विरुद्ध नहीं है। तुम्हारा, सपने. उसने, सभी, कभी, हुए, हुआ, हुई, उन्हाने, इन्होने आदि लिखना ठीक है, दृमरा रूप ठीक नहीं।. पद्रविदु का प्रयोग उच्चारण पर ध्यान देकर अवश्य करना चाहिए। विरामचिहों के विषय में यह मत दिया गया कि कोलन () को छोड़ कर अन्य विरामचिहों का प्रयोग किया जाय । अँगरेजी, फारसी भाषा के शब्दो को नागरी अक्षरों में