पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/८४

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मेरी आत्मकहानी लिखने के लिये कई संकेतो की कल्पना की गई। पर इस संबंध में मेरे मत में अव परिवर्तन हो गया है। देवनागरी अक्षर भारतीय आर्य-भाषाओं के लिखने के लिये हैं। यद्यपि सकेत-चिहो को लगाकर दूसरी भाषा के शब्द मी लिखे जा सकते है पर इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि देवनागरी-सी वैज्ञानिक और सुंदर लिपि ससार में दूसरी नहीं है। वह यहाँ के निवामियों के नाद-यंत्र की बनावट को ध्यान में रखकर रची गई है। उनमे पतद्देशीय लोगो के उच्चारण के लिये सब चिह वर्तमान हैं, न किसो चिह्न का अभाव है और न किसी का श्राविक्य । प्रताण्व इसमे अधिक चिहो को जोड़कर इसे जटिल बनाना उचित नहीं है। हाँ, ख, घ, घ, म, म. ण के चिह्नो मे किंचित् नाम-मान का परिवर्जन वांछनीय हो सकता है जिसमें लिखावट मे उनी सदिग्धता दूर हो जाय । मनुष्य खाद्य पदार्थों का भोजन करता है और उसका पाचन यन्त्र उसे मथकर उसमें से जो अंश शुक्र, रक्त, मन्जा, मांस, अस्थि आदि के लिये आवश्यक होता है उसे ग्रहण कर वाकी को फेंक कर बाहर निकाल देता है। इसी से उसके प्रत्येक अवयव की पुष्टि तथा पृद्धि होती है । जब उसकी पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है तब उसका शरीर जर्जरित होने लगता और अंत मे नष्ट हो जाता है । भापा को पाचन शक्ति भी ऐसी ही है। उसके अंग की पुष्टि और वृद्धि तथा मांडार की पूर्ति के लिये उसको शों की आवश्यकता होती है। उन्हे जहाँ से प्राप्त हो सके ले लेना चाहिए। पर इस बात -