पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१११

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। १०६ ऐतिहासिक कहानियां चौहानों ने लात मारी है । कुमारपाल ने दिलासा दिया--धीरज रख । इस लात के मूल्य का लोहा गुजरात में है। कुमारपाल ने चालीन हजार सेना और चार सौ नाचत अर्णोराज पर रवाना कर दिए । सेनापति को आदेश दिया कि प्रर्णोराज को जिन्दा बांटकर मेरे सामने लाया जाए। अर्णोराज ने सुना कि गुजरात की चालीस हजार तलबारें शाक- म्भरी की ओर पा रही है तो वह अपने तीस हजार चौहानों और तीन सौ सावंतों को लेकर शाकम्भरी से बाहर निकला। राह में ही दोनों सेनाएं भिड़ गई : गुजरात के सोलंकी और साम्भर के चौहान । खूब लोहा वजा । रक्त की धाराएं वहीं । झण्ड-मुण्ड लोटे । चील और गृद्धों का जशन हुआ । लोहे ने लाल पानी पिया । अन्त में वजनी रहा-गुजरात के सोलंकियों का लोहा । अर्णोराज घायल होकर बन्दी हुए। कुमारपाल के सेनापति अर्णोराज को रस्सियों से बांधकर पाटन ले पाए-पाटन, जहां कभी वह सिर पर मौर बावकर बाजे-गाजे के साथ आए थे। इस युद्ध में जिन राजाओं ने अर्णोराज की सहायता की थी, उन सवको कुमारपाल ने मृत्यु-दण्ड दिया। केवल अर्णोराज को बन्दीगृह में रखकर उसको क्या दण्ड दिया जाए, इसपर वे विचार करने लगे। देवलदेवी का हृदय हाहाकार करने लगा। उसने अपने वस्त्र फाड़ डाले, बाल नोच लिए। अन्न-जल त्याग दिया। हाय, उमीकी करनी से आज उसके महाप्रतापी पति की यह दुर्दशा हुई ! जहा जमाई होने के नाते कभी उनके पैर पूजे जाते थे, वहां वे प्राज बन्दीघर में पड़े मृत्यु की प्राज्ञा की बाट जोह रहे थे। कैसे वह अब अपने पति के प्राणों की रक्षा करे? कैसे वह अब अपने वैधव्य को टाले ? भाई कितना कठोर हृदय है-यह वह जानती थी। उसे कुमार- पाल से दया की कुछ भी पाशा न थी। बहुत सोच-विचारकर उसने गुजरात के मन्त्री उदय महता को बुलाया । और रो-रोकर उनके पैरों में लेटकर उसने कहा-~~-महता, शाकम्भरी का प्राधा राज्य ले लो, पर मेरे पति के प्राण बचा लो । मुझे विधवा न बनायो। मैं तुम्हारी शरण हूं।' उदय महता प्रोसवाल जैनी थे। वह बड़े राजनीतिज्ञ और योग्य पुरुष थे। गुजरात के बड़े राज्य का सारा राज्य-भार इन्हीं योग्य मन्त्री पर था। देवलदेवी को उन्होंने बहुत सांत्वना दी। और उसके कान में अपनी युक्ति का मन्त्र सुना दिया। मन्त्र समझाकर उन्होंने कहा-बन, जैसा मैंने कहा है