पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कुम्भा की तलवार था वह इस समय इस असहाय दुःखिता बीर वाला पर था जिसे इस समय कहीं से कोई सहारा न था और प्रबल प्रतापी अकबर से मोर्चा लेना था। वह किले के पूर्वीय बुर्ज की खिड़की में मलिन वस्त्र पहिने बैठी गौर से मुगलों के टिड्डी-दल को देख रही थी। मनुष्यों को चिल्लाहट, घोड़ों की हिन-- हिनाहट, इधर-उधर डेरे गड़ने की खटपट की आवाज यहा भी उसके कानो में पड रही थी। उसीके पास उसकी पुत्री बैठी किसी राजपूत सिपाही का फटा वस्त्र सी रही थी। रानी ने भग्न मन से कहा-बेटी, अब नहीं। अब एक क्षण भी नहीं चल सकता, मुझे न अपनी परवाह है न, तेरी और न किसी और वीर पुरुष या स्त्री की। हम सब सच्चे राजपूत की भांति भूख और मृत्यु का सामना कर सकते है, परन्तु वह तलवार जो मेरे श्वसुर के पड़दादा ने अपनी पाग पर रखकर राणा कुम्भा से ग्रहण की थी और उसकी रक्षा का वचन दिया था, उसका क्या होगा? उसकी रक्षा किस भांति की जाएगी? क्या वह मुगल बादशाह के कदमों में पेश की जाने को दिल्ली भेज दी जाएगी? वह विजयी महाराणा कुम्भा की तल- वार, जिसे उन्होंने मालवे के प्रतापी सुलतान महमूदशाह खिलजी से बलपूर्वक हरण किया था ? रानी की हष्टि ऊपर उठकर किले की एक बुर्जी पर अटक गई । वह अत्यन्त गम्भीर और शोकपूर्ण विचारों में नग्न हो गई। बालिका ने हाथ का काम रख दिया। वह उठकर माता के पास आई और माता के मुख पर अपना मुख रख दिया। वह अति सुन्दर मुख था, पर भूख और वेदना के कारण बह गुलाब की सूखी हुई पंखड़ी की भांति शोभाहीन हो रहा था। प्रांखों का सभी रस सूख गया था। उसने करुण कम्पित स्वर में कहा- हम चालीस भी तो नहीं हैं मां, फिर हम सब भूख से अधमरे हो रहे हैं । हाय, माज हमें रोटी का एक टुकड़ा भी इतना दुर्लभ है ! बालिका ने एक सिसकारी भरी और माता से लिपट गई । रानी ने सहज- गम्भीर स्वर में कहा-धीरज, बेटी धीरज, यह समय भूख और मृत्यु की चर्चा का नहीं इस समय हमें उस तलवार की रक्षा का विचार करना चाहिए जो हमारे कुल की प्रतिष्ठा की चीज़ है। एकाएक बालिका के मस्तिष्क में कोई विचार उठा। उसने दोनों हाथों से