पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१२६

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कुम्भा की तलवार उसने वाण बालक की अोर साधा। बालक ने हाथ के संकेत से उसे रोका। उसने भरपूर शक्ति लगाकर पुकारा-राणा जी ! और वह मूछित हो वहीं गिर पड़ा। तुरन्त ही बलिष्ठ पुरुष कुटिया से बाहर निकल आए। उनके हाथों में तल- वारें थीं। दोनों व्यक्तियों ने नीचे उतरकर बालक को उठाया । बालक ने जल का संकेत किया। राणा ने वस्त्र उठाकर देखा, वह बालक नहीं वालिका थी। उसकी छाती पर गूदड़ से लपेटी हुई वह तलवार थी जो गूदड़ हटाले ही सूर्य की भांति चमकने लगी। बालिका ने भग्न स्वर में कहा-~-महाराणा की जय हो, मैं रणथम्भोर के दुर्गपति सुर्जनहाड़ा की पुत्री हूं। महाराज, चित्तौड़ पतन के बाद रणथम्भोर भी घेर लिया गया। पिता और भाई तो चितौड़ में ही काम आए थे। हम लोगों ने बहुत चेष्टा की पर महाराज, हम भूखों मरने लगे। अन्त में हमाय प्यारा रणथम्भोर...' 'बालिका बोल न सकी। उसके होंठ फड़ककर रह गए। बालिका के प्राण निकल गए । राणा के हाथ से तलवार छूट गई । वालिका की निर्जीव देह गोद में लेकर वे बालकों की भांति रोने लगे।