पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१२८

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हल्दी घाटी में यह पहला व्यक्ति मेवाड़ का हिन्दू-पति प्रताप था और दूसरा सरदार ग्वालियर का रामसिंह तंवर था। सरदार ने अपनी कमर में दूध को भांति सफेद पटका वांधते हुए कहा-~-अन्नदाता ! अाज हमारी कराली तलवार बहुत दिनों की अभिलाषा को पूरा करेगी। आज हम अपनी स्वाधीनता के युद्ध में अपने जीवन को सफल करेंगे, जीतकर या हारकर । प्रताप ने कहा- बिलकुल ठीक, यही होगा। मैं प्राज उस भाग्यहीन राजपूतकुल-कलंक को, जिसने अपने वंश की मान को ही नहीं, राजपूत मात्र के वंश को कल कित किया है, इस अपराध का बरावर दण्ड दूगा । वह एक बार फिर ऊंचाई तक तनकर खड़ा हो गया और उसने एक बार अपने उस विशलकाय भाले को अपने विशाल भुजदण्ड पर तोला। सरदार ने अचानक चौंककर कहा-अन्नदाता ! आपकी यह मुक्तामणि तो यहीं पर रह गई। यह कहकर उसने पत्थर की चट्टान पर पड़ी हुई एक देदीप्यमान मणि उठाकर प्रताप के दाहिने भुजदण्ड पर बांध दी। वह सूर्य के समान चमकती हुई मणि थी। उसे देख प्रताप ने हंसकर कहा--वाह ! इस अमूल्य मणि को तो मैं भूल ही गया था; परन्तु ठाकरां, सच बात तो यह है कि अब भूलने के लिए मेरे पास बहुत कम चीजे रह गई हैं। सरदार ने हाथ जोड़कर विनीत स्वर में कहा-स्वामी, आपका जीवन और प्रापका यह भाला जब तक सुरक्षित है, तब तक आपको संसार की क्सिी बहुमूल्य वस्तु की चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं । हमारे जीवन की सब से बहु- मूल्य वस्तु तो हमारी स्वतन्त्रता है। अगर हम उसकी रक्षा कर सके तो हमे ऐसी छोटी-मोटी मणियो की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी। राजा ने मुस्कराकर वृद्ध सरदार की ओर देखा। सरदार मनोयोग से वह मणि राजा के दाहिने भुजदण्ड पर सावधानी से बांध रहे थे। प्रताप ने फिर मुस्कराकर कहा-किन्तु ठाकरां, क्या सचमुच आपको इस बात का विश्वास है ? इस मणि में क्या वह चमत्कार है कि जिसके विपय मे किम्बदन्ती चली पा रही है ? क्या यह सच है कि जो कोई इस मणि को पास में रखेगा वह युद्ध मे अजेय और सुरक्षित रहेगा? सरदार ने गम्भीरता से कहा-अन्नदाता वुड्ढे लोगों से यही सुनते पाए हैं। प्रताप ने एक बार फिर अपने भाले फो हिलाया 'तब ठीक है, माज इस बात की परीक्षा हो जाएगी। परन्तु ठाकरा --