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अम्बपालिका
११
 


तेलों में भिन्न-भिन्न सुगन्ध मिलाकर इत्र बनाए जाते और नागरिक उनका खुला उपयोग करते थे । रेशम और बहुमूल्य महीन मलमल के व्यापारियो की दुकानों पर बगदाद और फ़ारस के व्यापारी लम्बे-लम्बे लबादे पहने, भीड़ की भीड़ पड़े रहते थे। नगर की गलियां सकरी और तंग थीं और उनमें गगन- चुम्बी अट्टालिकाएं खड़ी थीं, जिनके अन्धेरे तहखानों में इन धन-कुवरों का बड़ा भारी कोप और द्रव्य रखा रहता था।

सन्ध्या-समय सुन्दर श्वेत बैलो के रथों पर, जिनपर बढ़िया सुनहरा काम हुआ रहता था, नागरिक सैर करने राजपथ पर निकलते थे। इधर-उधर हाथी झूमते हुए बढा करते थे और उनपर उनके अधिपति रत्नाभरणों से सज्जित अपने दासों तथा शरीर-रक्षकों से घिरे हुए चला करते थे।

अभी दिन निकलने में देरी थी। पूर्व की ओर प्रकाश की आभा दिखाई पड़ रही थी, पर मार्ग में अंधेरा था। राजमहल के तोरण पर अभी तक प्रकाश जल रहा था। चारों ओर प्रतिहार पड़े सो रहे थे। उनमे से केवल एक भाला टेक्कर खड़ा नींद में झूम रहा था। तोरण के इधर-उधर कई कुत्ते पड़े सो रहे थे।

धीरे-धीरे दिन का प्रकाश फैलने लगा। राजवर्गी इधर से उधर आने-जाने लगे। प्रतिहाररक्षी सेना का एक नवीन दल तोरण पर आ पहुंचा। उसमें से एक दण्डधर ने आगे बढ़कर भाले के सहारे खड़े-खड़े ऊंघते मनुष्य को पुकारकर कहा-महानामन ! सावधान होओ और घर जाकर विश्राम करो। महानामन ने सजग होकर अपने दीर्घ काय का और भी विस्तार करके एक जोर की अग- डाई ली और यह कहकर कि — तुम्हारा कल्याण हो, वह अपना भाला धरती पर टेकता हुआ तीसरे तोरण की ओर बढ़ गया। पश्चिम की ओर पुराना प्रासाद और राजमहल का उपवन था, जिसकी देख-रेख महानामन के सुपुर्द थी। यही उसकी छोटी सी कुटिया थी, जहा वह अपनी प्रौढ़ा पत्नी के साथ १७ वर्ष से एकरस-आंधी-पानी, सर्दी-गर्मी में रहता था ।

वह नींद में झूमता हुआ ऊंघ रहा था। अब भी प्रभात का प्रकाश धुंधला था। उसने अपनी कुटी के पास एक कदली वृक्ष के नीचे, आम्रकुंज में एक श्वेत वस्तु पड़ी रहने का भान किया। निकट जाकर देखा, एक नवजात शिशु स्वच्छ