हल्दी घाटी म १२५ करके कहा-मेरे प्यारे बीरो, वंशधरो! आज हम वह कार्य करने जा रहे है जो हमेशा हमारे पूर्वजों ने किया है। हम आज मरेंगे अथवा विजय प्राप्त करेगे । हमारा इस युद्ध मे कोई स्वार्थ नहीं है । हम केवल इसलिए युद्ध कर रहे है कि हमारी स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप हो रहा है । क्या यहां पर कोई ऐसा राजपूत है जो पराया गुलाम बना रहना पसंद करे ? जो ऐसा हो उसे मेरी तरफ से छुट्टी है, वह अपने प्राण लेकर यहां से अलग हो जाय । परन्तु जिसने क्षत्राणी का दूध पिया, उसके लिए प्राज जीवन का सबसे बड़ा दिन है। आज उसे अपने जीवन की सबसे बड़ी साध पूरी करनी चाहिए। इसके बाद प्रताप ने ललकार उठाई और उच्च स्वर से पुकारकर कहा~-वीरो ! क्या तुम्हारे पास तलवारें है ? राणा ने तिर उसी तेजस्वी स्वर में कहा-~- और तुम्हारी कलाइयों में उन्हें मजबूती से पकड़ रखने के लिए वल है ? सेना ने फिर जयनाद किया, हजारों कण्ठ चिल्लाकर वोले-हम जीते जी और और मर जाने पर भी अपनी तलवारों को नहीं छोड़ेंगे, हममें यथेष्ट बल है। राजा ने सतेज स्वर में कहा--तब चलो, हम अपनी स्वाधीनता के युद्ध में अपने जीवन और अपने नाम को सार्थक करें। एक गगनभेदी वाणी से सारा वाता- वरण भर गया। प्रताप उछलकर घोड़े पर सवार हो गया और तुरन्त ही सर- दारों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया। पहाड़ी नदी के तीव्र प्रवाह की भांति यह लौहपुरुषों का दल अग्रसर हुआ। धौसा बज रहा था और कड़खे के ताल पर चारण और बन्दीगण सिपाहियों की प्रत्येक टुकड़ी के श्रागे उनके पूर्वजों की बिरुदावलियां भोज भरे शब्दों में गाते हुए चल रहे थे। मुगल-सैन्य एक लाख से अधिक था। जिसमें ६० हजार चुने हुए घुड़सवार थे। उसमें तुर्क, तातार, यवन, ईरानी और पठान सभी योद्धा थे। सवारों के पीछे हाथियों का दल था और उनपर धनुर्धारी योद्धा सजे हुए थे। दाहिनी तरफ वीरशिरोमणि मानमिह तीस हजार कछवाहों को लिए हुए खड़े थे । बाई तरफ सेनापति मुजफ्फरखा बाईस हजार मुगलों के साथ था। हरावल में दम हजार चुने हुए पठानों की फौज थी। बीच में एक ऊंचे हाथी पर शाहजादा सलीम अपने छह हज़ार शरीर-रक्षकों के साथ युद्ध को गातिविधि देख रहा था। दोनों सेनाएं सामने होते ही भिड़ पड़ी। प्रताप अपनी सेना के मध्य भाग में चल रहे थे। उनके दाहिने भाग में सलूंबरा सरदार थे और बाईं ओर विक्रम