पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१३१

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१२६ राजपूत कहानिया सिंह सोलंकी । प्रताप ने सोलंकी के शत्रु के दाहिने पक्ष पर जमकर प्राक्रमण करने की प्राज्ञा दी। इसके बाद तुरन्त ही उन्होंने सालूम्बरा सरदार को सीधे मुगलपक्ष के बाएं पक्ष में घुस जाने का आदेश दिया और फिर वे तीर की भाति अपने चुने हुए वीरों के साथ मुगल-सैन्य के हरावल पर टूट पड़े । प्रताप का दुर्धर्प वेग मुगल-सैन्य न सह सकी। हरावल टूट गया और सेना के सब प्रवन्ध में तुरन्त गड़बड़ी पैदा हो गई। सलीम ने अपनी सेना को भागते हुए देखकर अपने हाथी के पैरों में जंजीर डाल दी। शाहजादे को दृढ़ता से खडा देखकर मुगल-सेना फिर से लौट आई। अब युद्ध का कोई क्रम न रह गया था । तेगा से तेगा बज रहे थे, दुवारें खड़क रही थीं, खून के फव्वारे वह निकले थे। घायलों और मरते हुओं का चीत्कार सुनकर कलेजा कांपता था। योद्धा लोग वीर-दर्प से उन्मत्त होकर घायलों और अधमरों को अपने पैरों से रौदते हुए आगे बढ़ रहे थे। प्रताप अप्रतिम तेज से देदीप्यमान थे और वे दुर्धर्ष शौर्य से मुगल-सैन्य में घुसते जा रहे थे । सरदारों ने उनको रोकने के बहुत प्रयत्न किए; परन्तु उनका क्रोध निस्सीम था, वे बढ़ते ही चले गए। सरदारों ने उनके अनु- गमन की चेष्टा की परन्तु प्रताप उनसे दूर होते चले गए। युद्ध का बहुत कठिन समय आ गया था। प्रताप के चारों तरफ लाशों के ढेर थे परन्तु शत्रु उनकी तरफ उमड़े चले आ रहे थे। उनका चेतक हवा में उड़ रहा था। वे सलीम के हाथी के पास जा पहुंचे। उन्होंने चेतक को एड़ दी और भाले का एक भरपूर हाथ उछलकर हौदे में मारा । पीलवान मरकर हाथी की गर्दन पर झूल पड़ा। सलीम ने हौदे में छिपकर जान बचाई। फौलाद के मज़बूत हौदे में टक्कर खाकर प्रताप का भाला भन्न कर टूट पड़ा। प्रताप ने खींचकर दुधारा निकाल लिया। हजारों मुगल उनके चारों तरफ थे, हजारों चोटें उनपर पड़ रही थीं। प्रताप और उनका चेतक बराबर चले जा रहे थे। प्रताप ने अांख उठाकर देखा, वे अपनी सेना से बहुत दूर चले पाए थे। उन्होंने जीवन की प्राशा छोड़ दी और फिर दोनों हाथों से तलवारें चलाने लगे, लाशों का तूमार लग गया। चिल्लाहट और चीत्कार के मारे आकाश रो उठा। प्रताप का सुनहरे काम का झिलमिला टोप धूप में सूर्य की भांति चमक रहा था । और उनके भुजदण्ड में बंधा हुआ वह अमूल्य रत्न प्रांखों में चकाचौंध लगा रहा था । धीरे-धीरे से मुगल-योद्धा उनपर टूट पड़े थे। प्रताप को बहुत से घाव लग गए थे। वे