पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हल्दी घाटी मे १२७ शिथिल होते और थके जा रहे थे। उनके शरीर का बहुत रक्त निकल चुका था। उन्होंने थकित दृष्टि से अनन्त तक फैले हुए मुगल-सैन्य की ओर देखा, एक ठण्डी सांस ली और अपने हृदय में एक वेदना का अनुभव किया। वे मृत्यु से आख-मिचौनी खेल रहे थे। सलूम्बरा सरदार ने दूर से देखा। वे शत्रुओं के दाहिने पक्ष को बिल्कुल विध्वस्त कर चुके थे। कछवाहों से उन्होंने खूब लोहा लिया था। उन्होंने दूर से देखा, प्रताप' का अकेला झिलमिला टोप और वह अमूल्य मणि मुगलों के अनत सैन्य-समुद्र में डूबती हुई नौका के समान एक क्षणिक झलक दिखा रहे हैं । उनके हृदय में चोट लगी। उन्होंने कहा- अरे ! मेवाड़ का सूर्य तो यहीं अस्त हो रहा है। बुड्ढे बाघ ने अपने घोड़े को एड़ दी। उसकी वाग मोडी और अपने योद्धाओं को ललकारकर कहा--हिन्दूपति महाराणा की जय हो, वह देखो महाराणा ने शाहजादे के हाथी को घेर लिया, आयो चलो, आज हम प्राण देकर महाराणा का अनुगमन करें। वीरों ने हुंकार भरी। बिजली की तरह तलवारें चमकने लगी और तलवार के जादू से रास्ता बनने लगा और अमर वीरों की वह छोटी सी टुकड़ी शत्रु-संन्य को चीरती हुई क्षण-क्षण में महाराणा के निकट होने लगी । महाराणा का एक हाथ बिल्कुल निकम्मा हो गया था। अब उसमें वार करने की ताकत नहीं थी; वह केवल अपना बचाव करते थे। उनकी गर्दन कन्धे पर लटकने लगी। उन्हें मुमूर्षु अवस्था में देखकर यवन-सैन्य ने वज्र- ध्वनि से 'अल्लाहो अकबर' का नारा लगाया, और दूसरे ही क्षण वह नाद 'जय एकलिङ्ग' की वज्रगर्जन में विलीन हो गया। एक दफा फिर तलवारों के उस समुद्र में ज्वार प्राया। महाराणा ने सचेत होकर पीछे की ओर देखा : रंगीन पगड़ियां उनकी तरफ को लहराती हुई चली आ रही हैं। उन्होंने एक बार फिर चेतक को फटकारा। दूसरे ही क्षण किसी ने उनके सिर पर से वह झिलमिला टोप उतार लिया और एक दूसरी पगड़ी उनके सिर पर रख दी। वह बहुमूल्य मणि भी उन के भुजदण्ड से खोल ली गई। महाराणा ने मुरझाई हुई दृष्टि से देखा : सलूम्बरा सरदार अपने घोड़े की बार को दांतों से पकड़े हुए उनका झिलमिला टोप सिर पर रखे हुए हैं और उनकी वह मणि भी सरदार के दाहिने भुजदण्ड पर बवी