पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१४०

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- वाणवधू 'नहीं प्रिये, एक बार इच्छा-पूर्ति कर दो।' 'तब लो।' (तलवार का प्रहार) 'तारा, ठहो, दूसरा परे पतित, अब नहीं 'क्षमा करो, निहत्थे 'अरे घृणित चोर' 'यह आखेट मेरा है।' 'क्या कहा, तुम्हारा इतना साहस ?' 'तुम कौन हो इतने गर्वीले ? 'अरे, तुम कौन हो इतने सुन्दर, कोमल और निर्भय।' 'पहला प्रश्न मेरा है।' 'तब मुनो, मैं पृथ्वीपाल हूं।' 'मेवाड़ के राजपुत्र ? 'हां वही, तुम कौन हो?' 'इससे प्रयोजन नहीं, आखेट तुम ले जाओ।' 'वाह, परिचय तो देना पड़ेगा।' 'मुझे क्षमा करो कुमार। 'अरे यह कैसी भाषा, मुझे ही तुम क्षमा करो, आखेट तुम ले लो।' 'नहीं, वह तुम्हारा है।" 'मन में शङ्का होती है, पर तुम स्वयं हो परिचय दो।' 'मै तारा हूं।' 'वाह ! राजकुमारी, अच्छा मेल हुआ, यह प्राखेट तो मेरा है, मैं तुम्हारा आखेट हूं।' 'कुमार ! मेरी प्रतिज्ञा तो राजपूताने भर में प्रख्यात है, आप इस प्रकार की चर्चा न करें; अपने रास्ते जाएं।' 'कुमारी, आज ही वह प्रतिज्ञा पूरी होगी।' 'क्या यह सत्य है ? 'आज मुहर्रम है, अभी तीन पहर दिन शेष है, मुसलमान सब मुहर्रम में