पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१५२

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नवाब ननकू १४७ कुंवर साहब ने पिता की ओर देखा। राजा साहब ने कहा-ले लो, और चाची को फिर मुकर्रर सलाम करो। कुंवर साहब ने फिर झुककर सलाम किया। राजेश्वरी ने दोनों हाथ उठा- कर आशीर्वाद दिया। राजा साहब ने इशारा किया और कुंवर साहब चले गए। एक ठण्डी सांस खींचकर राजा साहब ने कहा-इस निकम्मे बाप ने अपने वेटे के लिए भी कुछ न छोड़ा राजेश्वरी, मगर तसल्ली यही है कि जहीन है, पेट भर लेगा। 'हुजूर ऐसा क्यों फर्माते हैं। इन मुबारक हायों से भीख पाकर लोगों ने रिया- सतें खड़ी कर ली हैं । दुनिया में दिल ही तो एक चीज है हुजूर, भगवान् भी यह सब देखता है। वह उस आदमी की औलाद पर वरकत देगा जिसने अपनी जिन्दगी में सब को दिया ही है, लिया किसीसे भी कुछ नहीं।' राजा साहब ने हाथ बढ़ाकर राजेश्वरी का हाथ पकड़ लिया । बहुत देर तक कमरे में सन्नाटा रहा । दो पुराने किन्तु पानीदार दिल मन ही मन एक-दूसरे को यत्न से संचित स्नेह से अभिषिक्त करते रहे । आखिर राजा साहब ने एक ठण्डी सांस भरी, और गुडगुड़ी में एक करा लगाया। नवाब ननकू हांकते हुए मा वरामद हुए। उनकी नाक पर की ऐनक नाक की नोक पर खिसक आई थी। आते ही उन्होंने खिदमतगार को एक डांट दी- अरे कम्बख्त, वदनसीब, अंगीठी में और कोयले क्यों नहीं डाले, वह बुझ रही है। नवाब साहब जब तक हुक्म न दें, ये नवाब बच्चे काम न करेगे । राजा साहब को दौरा हो गया, तो याद रख कच्चा चबा जाऊंगा । उठ, जल्दी कोयले डाल । खिदमतगार चुपके से उठ गया। नवाब ने ही-ही हंसते हुए कहा--देखा राजेश्वरी भाभी, खिदमतगार साले नवाब ननकू के आगे बन्दर की तरह नाचते हे । मगर मुंह पर कहता हूं, विगाड़ दिया है राजा साहब ने, नौकरों को बहुत मुंह लगाना अच्छा नहीं। 'लेकिन नवाब, उन गरीबों को छह-छह महीने तनख्वाह नहीं मिलती है, बेचारे मुहब्बत के मारे पड़े है ।' 'तो इससे क्या ? उनके बाप-दादों ने इतना खाया है कि सात पीढ़ी के लिए काफी है। .