पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१५३

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१४८ सामाजिक कहानिया 'मगर उन्होंने खिदमत भी तो की है।' 'तो रियासतें भी तो पाई हैं।' 'अच्छा देखू तो, राजेश्वरी के लिए क्या-क्या चीज़ लाए हो।' 'देखिए, और दाद दीजिए नवाब को ?' नवाब ने बोतल बगल से निकाली ! और भी बहुत सा सामान । 'अरे, यह इतनी खटपट किसलिए की नवाब साहव ।' राजेश्वरी ने कहा । 'जी, जैसे आप चिऊँटी के बराबर तो खाती ही है ? फिर आईं कितने दिन बाद हैं राजेश्वरी भाभी। जानती हैं; राजा साहब कितना याद करते है । जव राजेश्वरी जबान पर चढ़ती हैं. अांखे गीली हो जाती हैं । अम्मी जान कहती थीं, बड़े महाराज का भी यही हाल था, ज़रा सी बात पर दिल भारी कर लेते थे। 'वे देवता थे नवाब साहब ।' 'और ये? 'थे; इन्हें पहिचाना किसने है अभी ।' 'दुनिया ऐसों को कभी न पहचान पाएगी।' खिदमतगार अंगीठी टंच करके रख गया। नवाब साहब ने खुश होकर कहा-यह वात है रामधन, मगर देखो, मैंने तुम्हें एक गाली दी है, और यह दो रुपए इनाम देता हूं। नवाब ने दो रुपए निकालकर रामधन की ओर बढ़ा दिए। रामधन ने नबाव के पैर टूकर कहा- हुजूर, आपकी गालियां खाकर ही तो जी रहा हूं। रुपया-पैसा सरकार का दिया बहुत है । 'मगर यह भी रख लो, महरिया को एक बढिया सी चुनरी ला देना।' 'वह उस दिन हवेली गई थी सरकार, तो बेगम साहिबा ने जाने क्या-क्या लाद दिया था, गट्ठर भर लाई थी।' नवाब ने तैश में आकर कहा-प्रवे, रुपए लेता है या मंतिख छांटता है, क्या लगाऊं धील ? रामधन ने रुपए लेकर उन्हें और राजा साहव को सलाम किया। राजा साहब ने हंसकर कहा-देखा राजेश्वरी, नवाब का इनाम देने का तरीका। नवाव खिलखिलाकर हंस पडे। उन्होंने कहा-झपाके से तश्तरियां ला