पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१५४

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नवाद लन १४६ गिलास ला, पैग ला। जल्दी कर। क्षण भर में ही सब साधन जुट गए। राजा माहन तकिए के सहारे उठंग गए । शराब का दौर शुरू हुप्रा । नवाब ने गिलास में मोड़ा और शराब भर. कर कहा-राजेश्वरी, राजा साहब को तन्दुरुस्ती और बरकत के लिए। तीनो ने हंसती हुई प्रा मिलाई और शराब की चुस्मिा) लेने लगे। राजेश्वरी ने कहा- इस सरदी में बहुत दौड़-धूप की नवाब साहब । 'मान गई न आप नवाब को, लीजिए इसी वाल पर दूसरा पैग ।' 'नहीं नवाद, मैं तो कभी पीती ही नहीं । बहुत मुद्दत हुई, जब से महाराज की तबियत नासान रहने लगी। आज मुद्दत वाद मुंह से लगा रही हूं।' 'तो पूरी कसर निकालिए राजेश्वरी नाभी, नवाव को इस ठण्डी रात में उस माले ठेकेदार से बहुत मगजपच्ची करनी पड़ी। साला वही रद्दी माल पटील रहा था। मैंने कहा : वह बोतल निकाल जो उस दिन हमारे सरकार की खिदमत में गई थी। और ये कबाब, सच कहता हूं राजेश्वरी भाभी, कस्ले में दूसरा नहीं बना सकता।' 'वाकई बहुत अच्छे बने हैं, मगर आप तो खाते ही नहीं नवाब साहब ।' 'वाह, खिलाने में जो मज़ा है, वह खाने में कहां ? देखा था अम्मी को, यही एक शौक उन्हें मरते दम तक रहा-एक से एक बढ़कर चीजें बनाना और खिलाना।' 'मुझे याद हैं नवाय, मैं तब बहुत बच्ची थी, पापा के साथ आती थी, वे छोड़ती ही न थीं-खींच ले जाती थीं। कितना खिलाती थीं; क्या कहूं।' 'मगर अब अम्मी तो है नहीं, नवाब उनका नालायक लड़का है, उसने विरासत मे अम्मी की वह बादत्त पाई है । लीजिए, यह पैग तो पीना होगा।' 'मगर उधर तो देखो नवाब, महाराज ने सिर्फ होने से छुकर ही गिलास रख दिया है, पी कहाँ ? 'क्या कहूं, राजेश्वरी, तकलीफ देती हैं, पी नहीं सकता । डाक्टरों ने भी मना कर दिया है। मगर तुम पियो राजेश्वरी, आज मैं बहुत खुश हूं। लामो नवाब, राजेश्वरी को एक पैग मैं भरकर दूं।' 'और हुजूर, एक नवाब को भी ।' "अरे, यह कब से ? तुम तो कभी पीते नहीं थे ।'