पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१५५

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सामाजिक कहानिया 7 'मगर नवाव, 'आज ही से, अभी-अभी एक पैग पिया है मैंने ।' 'राजा साहब ने दो पैग भरकर तैयार किए । गिलास में भरकर कहा- लो राजेश्वरी, और तुम भी नवाव ।' 'वाह हुजूर यों नहीं, जरा-सा जूठा कर दीजिए कि यह जाम पाक तवर्लक हो जाय ।' नवाब ने कहा । राजा साहन हंस दिए। उन्होंने नवाब का हाथ पकड़कर और खींचकर छाती से लगा लिया। फिर प्रांखों में प्रांसू भरकर कहा-~-ननकू, मेरे प्यारे भाई, हमारो मां दो थी, मगर वालिद एक थे। फिर भी तुम मेरे सगे भाई हो । ऐसे, जैसा दूसरा मिलना मुश्किल है। और ननकू, मैं सिर्फ प्यार की बदौलत ही जी रहा हूं। उन्होंने प्याला ओठों से छिपाकर नवाव को दिया और नवाब गटागट पी गए । उनकी आंखों मे प्रांसू और होठों में हंसी बिखर रही थी। नवाव ने कहा----राजेश्वरी भाभी, बहुत दिन से सूने-सूने दिन जा रहे थे। आज तो कुछ जंच जाए। गले में अब सुर तो रहे ही नहीं।' 'बेसुरा ही सही। महाराज ने हंसकर कहा-राजेश्वरी, आज नवाव को बहुत मिहनत करनी पड़ी है, उसकी बात रख लो। 'जो हुक्म, मगर मेरी एक अर्ज है।' 'कहो।' 'नवाब साहब को जो तबरुर्क बख्शा गया है, वही लौडी को भी इना- यत हो।' 'प्रोह, अच्छा ठहरो, सग करो।' नवाब ने इशारा किया । रामधन तवला, हारमोनियम ले आया। हारमोनियम नवाब खींच बैठे, और रामधन ने चारों ओर तकिए लगाकर राजा साहब को पाराम से बैठाकर तवले उनकी गोद में रजाई में लपेटकर रख दिए । अम्वरी तमाखू की एक नई चिलम चढ़ा दी। तबले पर एक हल्की चोट देते हुए राजा साहब ने कहा-राजेश्वरी, अभी उंगलियों पर लकुए का असर नहीं है, काम दे रही है। राजेश्वरी ने चुपचाप अांखों में प्यार भरकर राजा साहब पर उंडेल दिया।