पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१५७

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'बहुत खुश, राजेश्वरी, बहुत खुश । न ऊबो का लेन, न माधो का दन। कर छाती से लगा लिया। फिर प्यार ले उसके गंगाजमुनी वालों की लटो को हो जायं, लेकिन इन आंखों में झांककर जिसने तुम्हें देखा है, वह बूढ़ा नहीं। रामवन अम्बरी तमाखू चढ़ाकर गुड़गुड़ी रख गया। राजा साहब चुपचाप तमाखू रीने लगे। तमाखू की खुशबू ने कमरे को मस्त कर दिया । १५२ सामाजिक कहानिया जब जनाना महल नीलाम हो रहा था, मैने कितनी भारत की थी कि मुझे रुपया चुकता कर देने दीजिए। पुरखों की यादगार है, सब रियासत गई। मगर रहने का महल-आप मेरे ग्रांसुओं से तो नहीं पसीजे हुजूर, आप बड़े वेदर्द हैं।' राजेश्वरी फूटकर रो पड़ी, और राजा साहब के सीने पर गिर गई । राजा साहब उसके सिर पर हाथ फेरते रहे। फिर कहा--तुम भी वच्ची हो गई हो राजेश्वरी, अव भला उतना बड़ा महल में क्या करता? अकेला पंछी । फिर उस- मे अव खुल गया जनाना अस्पताल, कितने लोगों का भला होता है। बोर्ट ने खामखाह मेरा नाम अस्पताल के साथ जोड़ दिया है । 'जी हां, खामखाह ही। वह लाखों की स्टेट जो कौडियों में दे दी। और अब हुजूर इस किराए के मकान में बहुत खुश हैं।' लेकिन बहुत देर हो रही है राजेश्वरी, गाड़ी पकड़नी है । स्टेशन काफी दुर है, और रास्ता बड़ा खराब है । तुम्हारा इक्का आ गया ?' 'धक्के दीजिए मुझे, बुड़िया जो हो गई हूं, अब आप यही तो करेंगे। राजा साहब असंयत होकर पलंग से प्राधे उठ गए । राजेश्वरी को खीच- उगलियों में लपेटते हुए कहा-बुड्डा-बुढ़िया कीन होता है राजेश्वरी, मेरी शाखा मे तुम वही-नए केले के पत्ते से रूप वाली, अछूते यौवन और अपार प्यार वाली, मेरे दिल और दिमाग की तरावट राजेश्वरी हो । तुम या मैं भले ही कूड़े और तुम्हारे भीतर बैठकर जो एक-एक मोती तुम्हारी आँखों में सजाता जा रहा है, वह भी बूढा नहीं। राजेश्वरी धीरे से राजा साहब के मुंह के बिलकुल पास फर्श पर बैठ गई। ? राजेश्वरी ने कहा- हुजूर वादा-वक्फ हो । राजा माहब ने भौहें सिकोड़कर राजेश्वरी की ओर देखकर कहा--बादा 'जी' 'क्या ?'