पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नवाब ननक्कू १५३ 'तबर्रुक।' 'श्रोह, भूली नहीं राजेश्वरी।' 'भूलने की एक ही कही, कल से आस लगाए हूं। नवाब के सामने फिर नहीं कहा।' राजा साहब कुछ देर चुपचाप गुड़गुड़ी पीते रहे। फिर कहा-जरा और पास आओ तो राजेश्वरी । राजेश्वरी बिल्कुल राजा साहब के मुंह के पास खिसक गई। राजा साहब ने गुडगुड़ी की सोने की मूनाल उसके होंठों में लगाकर कहा, एक कश खींचो तो राजेश्वरी । 'लेकिन, लेकिन हुजूर- 'ऐन खुशी होगी, खींचो एक कश।' राजा साहब की आंखों में प्यार का सारा ही रस उमड़ पाया। राजेश्वरी ने प्रानन्द-विभोर होकर गुडगुडी से कश खींचा। 'खुश हुई अब राजेश्वरी । 'प्रोह हुजूर, कहीं खुशी से मेरी छाती न फट जाए । हुजूर ने गुड़गुड़ी-खास इनायत करके मेरी सात पीढ़ियों को तार दिया।' राजा साहब ने खिदमतगार से कहा-रामधन, चिलम ठण्डी कर दे और गुड़गुड़ी उस अखबार में लपेटकर इक्के में रख था। राजेश्वरी का मुंह सूख गया । उसने कहा, यह श्राप क्या कर रहे हैं ? 'मेरा दिल बाग-बाग है, तुम दुलखो मत ।' 'मगर हुजूर." 'मैं हुक्म देता हूं-मत बोलो।' राजेश्वरी का सिर नीचे को झुक गया। उसने खड़े होकर झुककर राजा साहब को सलाम किया और रोती हुई चली गई। राजा साह्न चित्त अपने पलंग पर पत्थर की मूर्ति की भांति निश्चल-निर्वाक् पड़े रहे ! 'यह क्या तमाशा है रामधन, महाराज मिट्टी की गुड़गुड़ी में तमाखू पी रहे हैं। गुड़गुड़ी-खास क्या हुई ?' नवाब ने कमरे में आते ही हैरान होकर पूछा। रामधन चुपचाप खड़ा रहा। उसे बाहर जाने का इशारा करते हुए राजा साहब