पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१५९

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सामाजिक कहानियां ने मुस्कराकर कहा यहां आयो नवाब, मैं बताता हूं। नवाब ननकू एकदम पलंग के पास जा खड़े हुए, राजा साहब ने हंसकर कहा-बैठो। 'मगर मैं पूछता हूं गुड़गुडी-खास क्या हुई ?' 'बैठो तो कहूं । नवाब ने बैठकर कहा-कहिए। राजा साहब ने रजाई से हाथ बाहर निकालकर नवाब का हाथ पकड़ लिया । कहा-नाराज न हो नवाब, राजेश्वरी को दे दी। 'क्या उन्होंने मांगी थी? 'नहीं, मगर उसे खाली हाथ कैसे जाने देता । तुम देखते ही हो, खानदान की वही एक चीज़ मेरे पास बची थी।' नवाब कुछ देर होंठ चबाते रहे, फिर बोले- मगर आप मिट्टी की गुड़गुड़ी में लमाखू नहीं पी पाएंगे। मैं गुड़गुड़ी लाता हूं। 'कहां से?' 'घर से। 'कहां पाई।' 'अम्मी जान की है, बड़े महाराज ने बख्श दी थी। मेरे पास यह अब तक पाक धरोहर थी। अब आज काम आएगी।' राजा साहब ने कहा---बड़े महाराज ने जो चीज़ बख्श दी, वह मैं वापस कैसे ले सकता हूं 'तो अब हुजूर नवाब को जीने न देंगे?' राजा साहब हंस दिए । मीठे स्वर से बोले-खैर, इस अम्र पर पीछे गौर कर लिया जाएगा। पर मिट्टी को गुड़गुड़ी में तम्बाकू बहुत मीठा लगता है नवाब। हां, यह कहो---रात सामान कैसे जुटाया था। मैं जानता हूं तुम्हारे पास छदाम न था। 'जुट गया यों ही । नवाब हूं, कोई अदना प्रादभी नहीं।' 'मगर सच-सच कहो।' 'झूठ से फायदा? चालीस रुपए बाबू साहब से लिए थे। 'बड़ी तकलीफ दी उन्हें । अब ये रुपए दिए कैसे जाएं।'