पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१६९

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सामाजिक कहानियां जाती, जैसे बहुत थक गई हो । बहुधा वह चौंककर, उठकर लाइब्रेरी में पहुच जाती, और जितना सम्भव होता, आत्मीयता और धनिष्ठता से कहती-प्राण क्या आप कोई खास विषय स्टडी कर रहे हैं ? इतना क्यों पढते हैं आप? स्वास्थ्य खराब न हो जाएगा ? कौन किताब है वह ? अच्छा, जरा मुझे भी सुनाइए न! रूखा-सूखा विषय भी आपके मुंह से बहुत सरस लगता है। कालेज क्यो नहीं गए पाप ? विद्यानाथ भी समयोचित जवाब देते । उनकी बात अन्तत. जल्द ही समाप्त हो जाती । उन्हें न विषय ही मिलता, न शब्द ही । तव सुषमा जैसे एकाएक कोई बात याद कर भाग खडी होती। और उसकी कोमल, पतली मुलायम उंगलियां हारमोनियम पर फिर थिरकने लगती। बीच-बीच में एकाध टूटा-फूटा चरण होठों से बाहर निकलकर हारमोनियम के स्वर में मिश्रित होकर उसे उत्साहित-सा कर जाता। सीसरे पहर चाय पीने के बाद विद्यानाथ ने सिनेमा चलने का प्रस्ताव किया। अच्छी फिल्म आई है, यह भी कहा 1 पर सुषमा ने मुस्कराकर अपनी अलस मुद्रा से कहा-आज तो जी नहीं चाहता। फिर कभी चलूंगी। आप देख पाइए। विद्यानाथ ने उस बात को टालकर कहा-अच्छा चलो, मैं एक नई 'ट्यू न" तुम्हें बताऊं। कहकर वह उसे उसके कमरे में खींच लाए, और हारमोनियम पर बह ट्य न बजाने लगे। पर तुरन्त ही उन्हें पता लग गया कि सुपमा देखने को तो ध्यान से देख रही है, पर मन न जाने किस आकाश में विचरण कर रहा है । उन्होंने अकस्मात् ही हारमोनियम बन्द कर दिया । हंसकर बोले अभ्यास ही टूट गया । बड़ी अच्छी ट्य न थी। अच्छा, इसका एक रिकार्ड लगाऊंगा। सुषमा ने जैसे स्वप्न से जागरित होकर कहा-छोड़िए इन सब झगड़ों को। आप मुझे इसी साल एम० ए० फाइनल में बैठा दीजिए। अभी बहुत समय है। 'समय अब कहाँ है ? तीन महीने तो यो ही बर्बाद हो गए।' 'समय बहुत मिलेगा। 'कैसे? 'पहले आप अधिक से अधिक दो घंटे पढ़ा पाते थे। उसमें भी बहुत बन्धन- बाधाएं थीं। पर अब तो रात-दिन एक कर पढ़गी !' 'तुम्हारी ऐसी ही इच्छा है, तो पढो फिर !' विद्यानाथ ने खिल होकर कहा।