पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१७२

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सुख-दान ? प्राई जाती है। तब तक आप इसे पीजिए, बाबूजी ! पर अाप पहले कपड़े तो बदलिए। रामानन्द बाबू कुछ बोले नहीं। चुपचाप शर्बत पीकर कपड़े बदलने लगे। फिर धम से कुर्सी पर बैठकर बोले-~~-कहां हैं प्रोफेसर साहब 'कालेज गए हैं । छुट्टी थी, पर उनका कोई खास काम हो रहा है। उसी काम में लगे है।' 'और तुम दिन भर अकेली यहां क्या करती रहती हो ? सूखकर कांटा हो गई हो ! यह सब क्या है ? ठहरो, मैं वहीं कालेज जाकर उनसे अभी जवाब तलब करता हूं ! अाखिर इसका मतलब क्या है ?' उन्होंने छड़ी उठाई। सुषमा ने हंसकर धीरे से छड़ी उनके हाथ से लेकर कहा- इस धूप में मला आप कहीं जा सकते हैं, बाबूजी ! मैं अभी घीसू को भेजकर बुलवाती हूं। साइ- किल से दस मिनट में लौट आएगा। घीसू बर्फ लेकर आ गया। उसे कालेज भेजकर सुषमा शर्यत तैयार करने रामानन्द ने चिल्लाकर कहा-रहने दे, रहने दे, सुषमा ! निमोनिया हो जाएगा ! मुझे प्यास-वास नहीं है । तू यहां पा तो तनिक ! पर सुषमा सुवासित शर्बत का शीतल गिलास लिए हंसते-हंसते माई, और कहा-निमोनिया क्यों हो जाएगा, बाबूजी ? 'होगा नहीं, इतना ठण्डा शर्वत इतनी गर्मी में पीने से ?' 'कभी नहीं होगा ! पीजिए !' 'तो भुगतना तुम ' रामानन्द गटागट शर्वत पी गए। फिर गिलास एक ओर रख, गहरी सांस लेकर बोले-अच्छा, अब कह 'क्या? 'यह मामला क्या है ? 'कौत मामला, बाबूजी ?' 'तेरी यह हालत कैसी है ?' 'हालत कैसी है!' 'रंग स्याह" 'और?' ! ग