पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१८२

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टार्च लाइट 'क्यों नहीं ? 'तो मेरे निकट आओ, इतनी निकट कि हम-तुम दो न रहें।' 'किन्तु कैसे ?' 'बाधा क्या है ? 'यही कि तुम मर्द हो, मैं औरत ।' 'मर्द के लिए औरत और औरत के लिए मर्द है।' 'नहीं, नहीं।' 'तब?' 'पति के लिए पत्नी, पत्नी के लिए पति ।' 'अच्छा यह बात है ? 'क्या यह इसके योग्य है ?' 'मोह, क्या बुरा मान गईं, परन्तु सुना है मर्द ही तो पति होता है।' 'नहीं।' 'तव ?' 'पति ही पति होता है।' 'कैसे?' 'मदं जगत् में बहुत हैं, पति केवल एक है । वह है तब भी है, नहीं है तब भी है !' 'और मर्द ?' 'वह है तब भी नहीं, और नहीं है तब भी नहीं।' 'किन्तु ?' 'किन्तु क्या?' 'मर्द ही में पति की भावना की जाती है।' 'नहीं, पति में मर्द की भावना की जाती है।' 'तो स्त्री को पहले पति चाहिए पीछे मर्द 'और यदि पति पीछे मर्द न निकले ?' 'तो लाचारी है। वह रहे ही नहीं तब भी लाचारी है।' 'आह, तुम्हारे मन में पति के लिए इतनी वेदना है ?'