पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सामाजिक कहानियां 'पति के लिए नहीं।' 'तुम्हारे लिए 'मेरे लिए नहीं।' 'मैं तुम्हें प्रेम करती हैं। 'क्या मुझसे भी अधिक ?' - 'तब दूर-दूर क्यों ? 'कह तो दिया।' 'समझ गया, मैं आज से मन-वचन-कर्म से धर्मपूर्वक तुम्हारा पति बनता हूं।' 5 'क्यों ? 'यह कोई मर्यादा नहीं है।' 'तब मर्यादा क्या है ? 'यह सब जानते हैं। 'तुम चाहती हो कि मैं नियमपूर्वक तुमसे विवाह कर लूं?' 'यदि यही चाहूं तो? 'मुझे स्वीकार है।' 'तो मैं मन-वचन से तुम्हारी दासी ।' 'नहीं, रानी।' 'रानी भी सही।' 'तो प्रिये अब? 'नहीं, नहीं।' 'अब क्यों नहीं? 'जब तक दुनिया मुझे पति-स्वरूप में तुम्हें न दे दे।' 'किन्तु वह झूठा दिखावा है, मैं प्राज देवता, नक्षत्र और दिवंगत गुरुजनों के समक्ष तुम्हें पली-भाव से ग्रहण करता हूं, लामो हाथ दो।' 'नहीं, ऐसा न करो।'