पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१८५

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सामाजिक कहानिया विनय ने सिगरेट के धुएं का वादल बनाते हुए कहा-चिन्ता न करो, चुटकी बजाते इस बोझ को कहीं कूड़े के ढेर में फेंक दिया जाएगा। पर बोझा उसे ढोना पड़ा। कूड़े के ढेर में नहीं फेंका गया। वह उसे ढोते- ढोते थक गई, पीली पड़ गई, कमज़ोर हो गई। किसीकी भी उसपर नज़र न पडे इसके लिए उसने बड़े-बड़े झूठ, जाल, असत्य और न जाने क्या-क्या किए। वह अब विनय के जितने पास आना चाहती वह दूर हटता। जब बोझे की बात चलती। कहता—फिक्र न करो। वह झुंझला भी उठता, खीन भी उठता, डाट भी देता। उसे रोना पड़ा—पहले छिपकर, सिसक्र-सिसककर, दहाड़ मारकर, थछाड़ खाकर, धरती पर सिर पटककर । परन्तु कुछ हुआ नहीं! एक दिन स्कूल से पाकर उसने देखा घर में अंधकार है, सन्नाटा है, दिया जला नहीं है । पिता को उसने पुकारा–पर जवाब नहीं मिला। दिया जलाकर देखा और उसका सारा रक्त पानी हो गया। उसने देखा, बूढ़े पिता ने अपनी महायात्रा उसकी गैरहाजिरी ही में कर ली है। उसका मृत शरीर पड़ा है। उसने कठिनता से अपने को मूछित होने से रोका। वह अांखें फाड़-फाड़कर मृत पिता के विकृत मुख को देखने लगी। उनकी अधखुली निस्पन्द प्रांखें देख वह उस सूने अंधेरे घर में भय से चीख उठी। परन्तु यह सब निरर्थक ही था । जीवन एक कठोर सत्य है । वह भीति, भावुकता और करुणा के वशीभूत नहीं होता । उसने प्रांसू पोंछे, एक गहरी सास ली। उसने टार्चलाइट हाथ में ली और वह विनय के घर की ओर चली । सड़क, गली और रास्ते उसने पार किए। आते-जाते जनों के उसे धक्के खाने पड़े, वह अंधेरी-अशुभ गलियों में हाथ के टार्च की लाइट फेंकती हुई आगे बढ़ती गई। गली के किनारे पर ही से देखा । सामने बिजली की रोशनी और गैस के हडों से गली जगमगा रही है । बैड बज रहा है। बहुत से स्त्री-पुरुष वढ़िया वस्त्र पहने एकत्र है। चांदी के वर्क लगे पान बांटे जा रहे हैं। गुलाब जल छिडका जा रहा है। वह आगे बढ़ी। घोड़े पर दूल्हा था। उसने टार्च की लाइट दूल्हे पर फेंकी । वह विनय था। क्षणभर को उसका सिर घूम गया। परन्तु अकस्मात् ही उसकी वेदना और विस्मृतियां मुस्करा उठी । एक मुस्कान की झलक उसके