पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१८६

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टार्च लाइट १७६ होठो पर पाई। विनय ने देखा। धीरे से झुककर एक साथी मित्र से कहा- यह इस वक्त यहां क्यों ? मित्र ने पूछकर बताया। यह कहती है, पिता मर गए, उनकी अकेली लाश पर पर पड़ी है । विनय ने क्षण भर सोचा और मित्र के कान में एक बात कही। मित्र उसे एक ओर अंधेरे में ले गया। एक कागज का टुकड़ा उसकी मुट्ठी में पकडा दिया और भत्सना के स्वर में कहा-इस मौके पर तुम्हारा यहां रहना प्राज ठीक नहीं था। इसे लो और अपना काम करो। मित्र तेजी से फिर भीड़ में मिल गए। उसने टार्च लाइट से देखा, उसकी मुट्ठी में एक सौ रुपए का नोट था । कह नहीं सकते, उसने उसे अस्पृश्य समझ- कर फेक दिया था वह उसके बोझ को न सम्हाल सकी, वह नोट वहीं उसकी मुट्ठी से गिर गया। उसने हाथ के टार्च को नीचे झुका दिया। रौशन नहीं किया। वह अंधेरी, सूनी, गंदी और ऊबड़-खाबड़ गलियों को पार करती, ठोकर खाती, गिरती, उठती अपने घर की ओर चली गईं, जहां उसका एकमात्र प्राधार पिता चुपचाप महानिद्रा में सो रहा था।