पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१८७

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वाहर और भीतर विवाह के लिए स्त्री की सुन्दरता ही प्राज भी प्रधान मानी जाती है, और उसके दूसरे गुण-दोषों को पीछे डाल दिया जाता है । इस कहानी में अत्यन्त मोहक रीति से इसी प्रश्न का व्यावहारिक और मनोरंजक वर्णन है। यह कहानी भी श्राचार्य की समाज-समस्या पर अब से तीस वर्ष पूर्व की विचार श्रृंखला की द्योतक है। उसे देखते ही नैन विद्रोही हो उठे। मैं दशहरे की छुट्टियों में कॉलेज से बड़ी उमंग से घर आया था । ब्याह के बाद वह पहली ही बार घर आई थी। इसकी खबर भाभी ने मुझे बड़े ही रस-भरे शब्दो में दे दी । ब्याह में मैंने उसकी एक झलक-भर देखी थी, उसी झलक की याद में मैंने ये तीन साल के एक हजार दिन उंगली पर गिन-गिनकर काटे थे। पाठको, आपमें क्या कोई भी ऐसा है, जो मेरी तरह नई दुलहिन से पहली बार मिलने की प्रसन्नता में अपना प्रापा न भूल जाए ? इस दुनिया में युवक के लिए दुलहिन से बढ़कर कौन चीज़ मीठी हो सकती है ? मैंने दर्जनों हिन्दुस्तानी और विलायती काव्य, नाटक तथा उपन्यास पढ़े थे । कालिदास की शकुंतला की भूति तो मेरे मानस-नेत्रों में बस रही है। जैसे प्रोस से भीगा हुआ गुलाब का फूल वसंत की हवा में झूम रहा हो, वैसे ही लज्जा, कोमलता और सुदरता की मूर्ति-सी शकुंतला मेरे मन में झूमती रहती है। मैंने शेक्सपियर की रोज़ालिंड और जूलियट भी अपनी प्रांखों के हिंडोलों में झुलाई है। मैं क्या मनुष्य नही, युवक नहीं, मेरी रगों में गर्म खून नहीं ? अजी, मैने नई दुलहिन पाई थी तीन साल पहले । पर हिन्दू-जाति में जन्म लेने के कारण ब्याह से पहले उसे नहीं देख सका ; पसन्द करने, प्यार करने, हृदय और प्रांखों का सौदा करने का सुभीता न पा सका तो भी क्या हुआ ? भारतीय स्त्रियों जैसा रूप, सच्चा प्यार ! भाभी ही को लो। दुनिया में कौन फूल ऐसा सुन्दर और कोमल हो सकता है ! वह ईश्वर का दिया हुआ आशीर्वाद-सा है, संसार को सुखी बनाने के लिए वही काफी

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