पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१८९

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१८४ समस्या कहानियां अब मैं एम० ए० पास कर चुका । मेरी पढ़ाई पूरी हो चुकी । ऊषा भी घर आ गई। भाभी ने मुझे दौड़ आने को लिखा था, सो मैं तूफान-मेल से दौडा हुआ घर श्रा पहुंचा। पहली मुलाकात थी, इससे मेरा कलेजा धड़क रहा था, लेकिन खुशी में मेरे रक्त की एक-एक बूंद नाच रही थी। दिन इन्तज़ारी और इधर-उधर की खट-पट में वीता, रात को ज्यों ही वह मेरे कमरे में पाई, उसे देखते ही मेरी आंखें जल उठीं । क्यों ? सो कहता हूं, सुनिए । मैंने सोचा था, वह धीरे से ज्यों ही मेरे कमरे में पाएगी, लेवेंडर और सेंटों की लपटों से कमरा महक उठेगा । उसकी रूप- ज्योति से मेरे कमरे में चांदनी हो जाएगी। जैसे मेरे क्लास में मेरी सुघड़, काली सहपाठिकानों के आने से हो जाता था । वह उन्हीं की तरह छिप-छिपकर, नयन- बाण चला-चलाकर मेरे सोए हुए हृदय को जगाएगी, और उन्हींकी तरह मन्द मुस्कान से मेरे मन को सुख-सागर में डुबोएगी। बह आकर, धीरे-धीरे लाज से नीचा मुंह कर मेरे पास खड़ी हो जाएगी। इसके बाद क्या करना होगा, सो क्या मैं जानता नहीं ? अनाड़ी नहीं हूं, मैंने सब सोच रक्खा है। मैं उसे खींच- कर पाम बिठा लूंगा, घूघट दूर करूंगा, और उस चांद-से मुख को चूम लूंगा। बार-बार चूमूंगा। इतने ही से मेरा जीवन सफल हो जाएगा। जिस दिन की याद में मैंने दुनिया की सुन्दरियों को हेच समझा था, वह समय आज आ गया। ! मैं कितना भाग्यवान् हूं। उसके सदुपयोग के सव साधन मैं जुटाए बैठा हूं। भाभी ने बहुत सी मिठाई, फूल-मालाएं, इत्र, सेंट और न जाने क्या-क्या मेरे पास रख दिए थे। फिर मैं भी तो ऊषा के लिए बहुत से उपहार लाया था। वे सव मेरे पास थे। इन सबका किस तरह उपयोग करना होगा, यह सब मैंने सोच रखा था। हां, तो मैं कह रहा था कि वह ज्यों ही मेरे निकट आएगी, मैं उसका चूंघट हटा, लज्जावन्त मुख उठाकर मधुर चुंबन लूंगा। ओह, पति का प्रथम चुंबन नववधू के लिए कैसा अमिट' स्नेह-चिह्न होगा ! वह फिर धीरे-धीरे मेरे पास प्राएगी, मैं उसे अंकगत करूंगा, मीठी बातों से संकोच दूर करूंगा, उसे प्रेम मे हुबो दूंगा; वह मेरे चरणों को चूमेगी, मुझे पाकर धन्य होगी, चिरवियोग के लेए रोबेगी। अरे. वह साक्षात् कालिदास की शकुंतला की भांति प्रेम-विह्वला अहा