पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/१९७

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१८८ समस्या कहानियां उसने धीरे से प्रांचल से एक कागज निकालकर मेरे हाथ में दे दिया । मुझे कौतूहल हुआ । क्या रायसाहब ने मुझे कुछ दान-पत्र दिया है ? रोशनी तेज करके देखा तो दंग रह गया। यह ऊषा के बी० ए० ऑनर्स में प्रथम श्रेणी में पास होने का सार्टिफिकेट था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऊपा इतनी उच्चशिक्षाप्राप्त है। मैं पागल की भांति ऊपा की ओर दौड़ा। मैंने कहा-~-ऊषा, मेरी रानी, मेरी माल- किन, तुमने मेरा जीवन सफल कर दिया ! ऊषा ने धीरे से कहा-इन तीन वर्षों में यही कर सकी। उसका स्वर कांप रहा था। दूसरे ही क्षण हम दोनों एक थे। हम लोग प्रेमी ही नही, गम्भीर दम्पति हैं। हमारे प्राणों से प्राण और शरीर से शरीर धुलकर एक हो गए हैं । हम भीतर तक स्त्रीत्व और पुरुषत्व को देख चुके हैं, बाहर के लिए हम अधेड़ हैं।