पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२०६

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कहानी खत्म हो गई भारद्वाज उतर गए । पर झेप की हंसी हंसते हुए बोले-सुनाओ यार, यहा दिल वाले भी बैठे हैं। और एक सिप चा' का लिया। फिर मेजर वर्मा की ओर मुखातिब होकर कहा---आपने तो उसे पुलिस को हिरासत में ही देखा था न ? मेजर ने कहा-~-जी हां, श्रोह, उस दिल हिला देने वाले वाकए को तो मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकता। खासकर वह घटना जब पुलिस के अफ़सर ने तरबूज़ की मिसाल देकर वह झोला मेरे सामने उलट दिया था। तोबा-तोबा !! मिसेज़ शर्मा एकदम वौखला उठी, बोली--अजी, पहेली न बुझाइए, किस्सा सुनाइए । हुअा क्या ? मेजर की आंखें भय से फटी-फटी हो रही थीं। जैसे अभी भी वे उस झोले से बाहर निकली हुई चीज को देख रहे थे। मैंने उन्हींको लक्ष्य कर कहा—उस वक्त तक भी पूरा किस्सा मुझे मालूम न था, सारी बातें तो पीछे मुझे मालूम हुई । पर तब तो वह मर ही चुकी थी। अपने पर शर्मिन्दा होने और अफसोस करने के अलावा हम कर ही क्या सकते थे? बहुत देर तक मेरे मुंह से बात न फूटी। कितनी ही बातें-कल्पना और सत्य की मेरे मानस-नेत्रों में नाच उठी, सच पूछिए तो मैं अभी तक उस घटना से मर्माहत न था, अभी--एक दिन पहले ही की तो वह घटना थी। घाव ताज़ा था। इस क्षण उसकी वे आंखें, आंखों की वह वेदना, निराशा, और सारी ही मानव-सभ्यता को धिक्कार का संदेश, जो मृत्यु के समय उसके निस्पन्द होंठ दे रहे थे, मेरे नेत्रों में आ खड़े हुए । मेरा कण्ठ रुक गया । मिसेज शर्मा वहुत विचलित हो गई। उन्होंने कहा—जाने दीजिए, यदि आपको वह किस्सा सुनाने में तकलीफ हो रही है तो मत कहिए। आप चा' लीजिए । उन्होंने एक ताज़ा प्याला तैयार कर मेरे नागे वढ़ाया। उनकी उंगलिया काप रही थी और उद्वेग तथा भावावेश से उनका हृदय आन्दोलित हो रहा है, यह स्पष्ट दीख पड़ता था। प्याले की ओर मैने अांख उठाकर भी न देखा और मैंने किस्सा कह्ना 3 शुरू किया- वह हमारे ही गांव की सकी थी। उसका बाप हमारी जमींदारी मे