पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२११

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२०२ समस्या कहानिया करूगा । वाहियात बात पर रात को बहुत देर तक नींद न पाई। उसका वह मुस्कराना, लजाकर भाभी की अोट में छिपकर देखना ! वाहियात ! वाहियात । ये सब खुराफात, गंदी बातें है। भला इनसे मुझे क्या सरोकार ! लेकिन नींद नहीं आ रही थी। मैने एक मोटी-सी कानून की किताब उठा ली, और एक कठिन कानूनी नुक्ते पर कुछ रूलिंग्स' पढ़ने लगा। लेकिन वहा तो प्रत्येक अक्षर की ओट से वह झांक रही थी-मुस्करा रही थी । धुत् ! भारद्वाज जोर से हंस पड़े। मैंने कहा- ठीक है, आप हंस सकते हैं। मेरे दुश्चरित्र और दुराचार का यह प्रमाण जो आपको मिल गया !! मैं चुप हो गया। और मैंने आंखें बन्द कर ली। लेकिन वही तरच एक प्रकार से मैं चीख उठा। मेजर वर्मा ने कहा—रहने दीजिए । बाकी कहानी फिर कभी सुन ली जाएगी। अभी आपकी तबियत दुरुस्त नहीं है । लेकिन मैंने कहना प्रारम्भ कर किया- दूसरे दिन मैने उसे नही देखा । यह नहीं कह सकता कि देखना नहीं चाहा। पर मैंने अपने मन को रोकने में कोई कोर-कसर नहीं रखी । पर वेकार । उसकी छिपी हुई नज़रें झांकती ही रहीं। उसके होंठ मुस्कराते ही रहे । मैंने सुना : उसकी सगाई हो गई है, और इसी साहलग में उसका ब्याह होगा । दशहरे के दिन मेरा तिलक चढ़ा। बहुत धूमधाम हुई । गाजे-बाजे, जशन- दावत, कहां तक कहूं। पिता का सबसे छोटा वेटा था । वे सबसे अधिक मुझको प्यार करते थे। भीड़-भाड़ में एक होकर मैंने देखा, हर बार मुझे प्रतीत हुआ : वह मुझको देख रही है। छुट्टियां समाप्त होने पर मैं होस्टल में लौट आया । धीरे-धीरे वह उन्माद बीत गया । स्मृति अवश्य बनी रही, वह भी धुंधली होते-होते छिप गई । अगले वर्ष मेरी शादी हुई। सुषमा ने आकर मेरे जीवन को एक नया मोड़ दिया। सुषमा जैसी पत्नी पाकर मैं कृतार्थ हो गया। वह जैसी सुशिक्षि ता है, वैसी ही शीलवती, परिश्रमी और हंसमुख स्वभाव की है। उसके प्रेम, सेवा और विनय से मैं उसमें लीन हो गया। उस लड़की की याद करके और अपनी हिमाकत का विचार करके कभी-कभी मुझे हंसी आ जाती थी-पर कभी मैंने किसीसे अपने -