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पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२२१

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२१२ समस्या कहानिया सुनाई । मैंने कहा-उसने क्या जुर्म किया है. क्या नहीं ?--इसकी वात मैं नहीं कहता। पर आपको इसे मारने-पीटने का कोई अधिकार न था। पुलिस अफसर ने शान्तिपूर्वक हमारा-मेरा और मेजर साहब का गुस्सा सहन किया। फिर उसने कहा-~-चौधरी साहब, मुझे आपसे एकान्त मे कुछ कहना है। यदि गांव आपका न होता तो मैं यहां प्राता भी नहीं। इसे थाने में ले जाता । पर आपका मुझे बहुत लिहाज़ था-इसीसे । मैंने कहा- अाखिर मामला क्या है ? 'श्राप जरा दूसरे कमरे में चलिए। मैं, मेजर बर्मा, वह और पुलिस अफसर दुसरे कमरे में चले पाए । अफसर के कहने से मैने भीतर से चटखनी चढ़ा दी। किसी अज्ञात भय से मेरी अन्त- रात्मा कांप उठी । मैं एकटक पुलिस अफसर के मुह की ओर देखने लगा। और तब उसने तरबूज़ की मिसाल दो। और मैं अब बयान नहीं कर सकता। मेजर वर्मा कहेंगे, इन्होंने वह सब देखा है। 'वेशक मैंने देखा था। ऐसा खौफनाक, दिल हिला देने वाला वाकया जिन्दगी भर मैंने नहीं देखा था ।' कुछ ठहरकर मेजर वर्मा वोले [---अफसर ने मेरी तरफ देखकर-क्योंकि मैं ही ज्यादा गर्म हो रहा था-व्यंग्यपूर्ण भाषा में कहा- जनाव, आप एक तरदूज लेकर उसे सिर से ऊपर उठाकर पटक दें तो कह सकते हैं कि उसका क्या परिणाम होगा ? उस नौजवान पुलिस अफसर की यह दिल्लगी मुझे न भाई। मैंने जरा गर्म लहजे में कहा--तरबूज फट जाएगा । लेकिन आपका मतलब क्या है ? इस औरत ने क्या तरबूज़ की चोरी की है ? 'जी नहीं ! क्या किया है देखिए ।' उसने कान्स्टेबिल को संकेत किया । और उसने हाथ में लटकते हुए झोले को जमीन पर उलट दिया। एक वजनी सी चीज धमाके के साथ जमीन पर आ गिरी । वह एक ताज़ा बच्चे की लाश थी। मिसेज़ शर्मा के मुंह से चीख निकल गई । भारद्वाज हाथ की सिगरेट फेजकर खड़े हो गए, दूसरे लोग भी अवाक् रह गए । भारद्वाज ने कहा-क्या ताजा वच्चे की लाश ? हौरेबल-माई गॉड ! लेकिन मेजर वर्मा ने आगे कहना जारी रखा-~-बच्चे को शायद पत्थर पर या कैसी सख्त चीज़ पर पटका गया था, जिससे उसका सिर उसी तरह फट गया