पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कहानी खत्म हो गई था जैसे ऊंचे से फेंक देने से तरबूज़ फट जाता है । और उसके भीतर से लाल- लाल लोहू-तोबा-तोवा ! मेजर वर्मा वाक्य पूरा किए बिना ही सिर पकटकर बैठ गए। फिर उन्होंने कहा-पुलिस अफसर ने बताया कि यह औरत तस्लीम करती है कि पहले हमल गिराया गया, लेकिन बच्चा जिन्दा पैदा हुआ । उसका मन घोटकर मार डालने की चेष्टा की गई, पर वच्चा मरा नहीं। तब उसे चक्की के पत्थर सिर के बल पटक दिया गया। उससे उसका सिर फट गया। पुलिस वालो ने बताया कि मार खाने पर ही इन सब बातों का पता इसने बताया है। पर बच्चा किसका है यह किसी हालत मे बताती नहीं है । इलीत्ते हम निस्पाय इसे यहा लाए है । उसने चौधरी साहब से आग्रह किया था कि वह इस औरत से उस आदमी का पता पूछे और कानून की मदद करें। चौधरी तब बहुत परेशान हो उठे थे, इसका कारण मैं तब नहीं समझा था-अब समझा कि .... अव फिर मैं कहने लगा -कचहरी में मैं पागल की भांति चीख उठा कि उस बालक का पिता मैं था। जी हां, उस बालक का पिता मैं था। वह मेरा बच्चा था-वैसा ही जैसा सुपमा की गोद मे हंस-खेल रहा है। लेकिन मिसेज़ शर्मा भी एकदम उठ खड़ी हुई। उन्होंने कहा बस बस, चौधरी प्रव खत्म कीजिए। और वह बिना कुछ कहे चल खड़ा हुई । परन्तु 'अब तो थोड़ी ही सी बात रह गई है। मेजर तो तुरन्त वहां से चल दिए थे। मेरे लिए मामला रफा-दफा करना लाजिमी हो गया। पुलिस को विदा कर, और अपराध का खोज-पता मिटाकर उसे मैंने उसके घर भिजवा दिया। थोडी ही देर बाद एक पड़ौसी के हाय उसने भैम मेरे पास भिजवा दी और इसके कुछ ही देर बाद मुझे सूचना मिली कि वह मर गई।' कहानी खत्म हो गई और सन्नाटा छा गया। चाय प्यालों में भरी हुई ठण्डी हो गई थी पर किसीने उसे छुआ भी नहीं ! एक-एक करके चुपचाप सब लोग उठकर चल दिए : मुझे प्रतीत हुआ जैसे एक लानत की नज़र मेरे ऊपर फेककर । मैं खामोश बैठा था । मेरा सिर घूम रहा था ! आंखों मे उस भोले में से निकली हुई चीज़ और सुषमा की गोद मे खेलता-हंसता हुआ मेरा पुत्र ! होठो से खून बहाती फटे कपड़ों में लांच्छिता वह नारी और गृहणी-गौरव-मण्डिता