पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२४८

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राजनीतिक कहानियां होगा, इस तत्त्व ने मेरे प्राणों को इस अधम शरीर में सुरक्षित रखा और इस कापुरुष ने यही गनीमत समझा । शिशु की फैली हुई बांह और हंसता हुआ मुख मैं कुछ काल तक देखता रहा, उस जेल-यन्त्रणा और मृत्यु की कोठरी में भी और इस अफसरी की सुखद किन्तु भीषण कुर्सी पर भी। परन्तु पाप के पथ पर तो पाप की हाट लगी ही रहती है । फिर लिली की बात क्यों छिपाऊ? न जाने क्यों वह मुझ अभागे पर मुग्ध हुई। उसका पति मेरा उच्च आफीसर था। हम लोगों ने विष द्वारा उस कण्टक को दूर कर दिया। अब लिली थी और मैं था। परन्तु मृतात्मा हमारे बीच में जीवित की अपेक्षा अधिक भयानक रूप में थी। एक बार फांसी के फन्दे को हम दोनों ने अपने संयुक्त गर्दनो के इर्द-गिर्द देखा। हमने सोचा, यहां से भाग चलें । तार दिया, जहाज का टिकट भी ले लिया, पर भाग न सके । जहाज पर खूनी असामी कहकर पकड़े गए। पर लिली का रोना देखने योग्य था। वह छूटती कैसे, हड्डियों तक घुस गई थी। हताश, दोनों मृत्यु का आलिंगन करने को तैयार हो गए। परन्तु ये कठिन प्राण तो इस शरीर में जमकर बैठे थे। उन्हीं शक्तियों ने प्राण बचा लिए । मैं लिली के मृतक पति के पद पर उसी मृतक के नाम से बैठ गया। लिली अब वास्तव में मेरी पत्नी थी। अब मानो मैं मर गया हूं, मैं नहीं हूं, जिसे मैंने लिली के लिए मारा, मानो वह मैं हूं। शिशु का वह हास्य और पत्नी के वे नेत्र अब भी कभी- कभी स्वप्न की तरह स्मरण पाते हैं, पर पूर्वजन्म की इन बातों मे अव क्या रक्खा है ? लिली से मैं अब भी प्यार की प्राशा करता था। छि.! कैसी विडम्बना है ! पति के हत्यारे को प्यार करना क्या साधारण है ? फिर यदि प्रेम की सुखद गोद मे हत्या जैसा पाप घुस जाए, तब वह जिन्हें सुखद प्रतीत हो वे निश्चय ही राक्षस होगे । हृदय की उन वेदनाओं को क्या कहा जाए, जिन्होंने शरीर को नष्ट कर दिया है ? और वह अभागा भी कैसा दुखी जीव है जो उसीके साथ रहने को विवश किया गया है जो उससे घृणा करती है ? हमारे रस की प्रत्येक बूंद में विप है, पर उसे रस कहकर पीना हम दोनों के ही लिए अनिवार्य है ! हाय रे प्रारब्ध ! मैं अभागिनी अबला स्त्री क्या करती ? मरना सुखकर था, परन्तु शिशु कुमार के मन्द हास्य ने उसे दुरूह कर दिया। क्या कोई भी मां अपने फूल से बच्चे को इस तरह हंसते छोड़कर मर सकती है ? अब तो मैं पहले मां थी. पीछे पत्नी।