पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२५२

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२४२ राजनीतिक कहानिया हैं ? क्यों आपने मुझे रोका है ? आपका क्या काम है, कहिए ?- अरे ! वही तो कण्ठ-स्वर था । सदा तो इसे मैंने सुना है, पर यह अपरिचित शब्द-जाल कैसा? मैं रो उठी, मैं गिर गई, चरणों पर नहीं, धरती पर। उन्होंने मुझे उठामा, तसल्ली दी। मैने देखा, वही, वही, यही है। मैंने गले में बांहें डाल दी। जितना रो सकती थी, रोई। मैंने कहा- दासी पर यह निष्ठुरता क्यों ? यदि यह अपराधिनी है, तो शिशु कुमार को क्यों भूल गए ? देखो प्यारे, वह मूख्कर काटा हो गया है। वह सदैव तुम्हारा ही नाम रटा करता है । तुमने स्वय उसे अपना नाम रटाया था। वे भी रो उठे । अन्त में उन्होंने कहा-प्रिये, धीरज घरो। मेरे कलेजे की आग देखो। मैं जीवन्मृत हूं, मैं कब का मर चुका है। सरकारी खातों में मेरी मृत्यु-निधि दर्ज है। पर जो वास्तव में मर गया है, उत्त नाम से मैं जीवित हूं। उसका नाम मेरा नाम है, उसका पद मेरा पद है, उसकी स्त्री मेरी स्त्री है । श्रोह ! वह मुझे घृणा करती है, और मैं उसे । हम दोनो हत्या के अभियुक्त है। फांसी की रस्सी हम दोनों की गर्दनों के चारो ओर पड़ी है। ज्यों ही हमने यह भेद खोला-अपना पूर्व नाम जाना, कि उसका फन्दा कत दिया गया। उसी दिन यह अधम देह प्राणों से रहित हो जाएगी। मैंने यह भेद समझा ही नहीं। मैं अवाक रह गई। पर जो कुछ सुनना श्रा, सभी सुना । मैंने कहा- मैं अधिकारियों से कहूंगी, कानून से लड़गी। उन्होंने कहा-सभी तरह मेरे प्राण जाएंगे। मेरे प्राण लेकर तुम क्या करोगी ? क्या इसीलिए यहां प्राई हो? मैं क्या करती ? मैं मूच्छित हो गई। उन्होंने धीरे-धीरे कहा----मेरे पास बहुत धन हो गया है । चाहे जितना ले जाओ। शिशु कुमार को पढ़ानो और अपने सधवा होने की बात भूल जाओ । मैं यदि मर सकता तो तभी मरता, जब बीर की तरह मरने का संयोग पाया था। अब इस तरह जीने के बाद, ज्यों-ज्यों पाप और कायरता शरीर में घुसती जाती है, त्यो-त्यों में मरने से भय खाता जाला हूं। प्रिये, तुमने बहुत सहन किया है, और भी सहन करो । मुझे तब तक जीने दो, जब तक जी सकता हूं। ग्लानि और अनुताप को मैं सहन कर गया हूँ । इससे अब ज्यादा कष्ट और कौन होगा ? मैंने कहा-जिस मूल्य में तुम जीवित रहो, वह मैं दूंगी। मैं भयभीत नही, शोकाकुल भी नही । मैं दस वर्ष पूर्व भीरु स्त्री थी, पर तुम्हारे वियोग और