पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२५३

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yule जीवन्मृत जीवन की कठिनाइयों ने मुझे पुरुष-सा साहसी बना दिया है। अब मैं उन तमाम अतीत स्मृतियों को भूल जाऊंगी, जिनके सहारे जी रही थी । जब तुम 'जीवन्मृत' हो तो मैं भी जीवन्मृत हुई । वह सब कुछ पिछले जन्म की बातें हुई । ब्रह गङ्गा का उपकूल, वह जीवन के उल्लासपूर्ण दिवस, उस दिन वनवीथिका में तुम्हारा खो जाना, वह शिशु कुमार के जन्म से प्रथम का प्यार, उसके जन्म-दिन का वह दुर्लभ उपहार प्राह ! वह सब मेरे पूर्वजन्म की बातें हैं ! मैं उस जन्म में पुत्र- वती, सौभाग्य-सिंदूर की अधिकारिणी, प्रेम और दुलार की पुतली थी। आज उन्हें भूलना भी कठिन है और याद रखना भी दुर्लभ ! पर भूलूं तो क्या ? और याद रक्खू तो क्या ? जिसे या नहीं सकती, उसकी कल्पना करने से हो क्या लाभ? मेरे इस असाधारण साहस का यही फल हुा । मैंने उन्हें विदा किया, इन जन्म के लिए । मेरा उनका शरीर-सम्बन्ध विच्छेद हुमा । उन्होंने मुझे बहुतकुछ देना चाहा, पर मैंने स्वीकार न किया। मैंने कहा-तुमने अपने सुख के दिनों में। जो शिशु कुमार मुझे दिया है, वही मेरे लिए बहुत है । मैं उसीके सहारे अवशिष्ट श्रायु काट दूंगी । तुम-तुम जानो और पाप, छल, पाखण्ड, विश्वासघाल मे जीवन बिताओ। मेरे जीवन्मृत स्वामी, तुम्हें धिक्कार है ! मैं तुम्हारा धन छू नहीं सकती, मैं पसीना बेचकर अपना और शिशु कुमार का पेट भरूंगी। -मैं चली आई।