पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२६६

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रजवाड़ों की कहानियां 'देख रहा हूं।' 'उसमें नोटों के गट्ठर भरे पड़े हैं।' 'अच्छा, तुमने देखा ?' 'देखा।' 'लेकिन खजाना तो नीचे पहरे में है।' 'यह महाराज' का प्राइवेट पर्स है।' 'अच्छा कितना रुपया है ?' 'कल गिना था, ५ लाख के नोट हैं।' 'सच !' 'एक मोतियों की माला है, कहते थे एक लाख की है ।' 'अच्छा ?' ‘एक हीरे की कलगी है, डेढ़ लाख की है।' 'अरे 'और मुट्ठी भर जवाहर-हीरे-मोती हैं ।' 'भई राजा का घर है, राजा के घर में मोतियों का अकाल ?' 'सुनो। 'क्या ?' 'मैं वह सेफ खोल सकती हूं।' 'अरे ! किस तरह ? 'एक तरकीब है। मुझे मालूम है।' उसने इधर-उधर देखा । डाक्टर ने कहा-क्या चावी हथिया ली है ? 'नहीं, हरूफ उलट-पुलट होते है । कल राजा साहब ने मुझे बताए डाक्टर ने अपने को सयत करके कहा- 'मुहब्बत, तुम जानती हो, मैं तुम्हें कितना चाहता हूं।' 'खूब जानती हूं !' मुहब्बत ने मुस्कराकर कहा । 'फिर यह दौलत अपनी होनी चाहिए । अभी उम्र बहुत काटनी है और तुम तो विल्कुल नौजवान हो । इस मुर्दे राजा के पास जैसे कब्र में दफना दी गई । इस दौलत' को हथियाकर तो तुम रानी बन सकती हो, सच्ची रानी !' 'ऐसा करना खतरे से खाली नहीं है।'