पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२६९

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मुहब्बत २५६ 1 ऊपर जाकर आरामकुर्सी पर बदह्वास से पड़ गए । डाक्टर आया। महाराज को बारीकी से देखा और कहा-रात ज्यादा ड्रिन्क किया गया प्रतीत होता है। श्राराम फर्माने से कल तक सब ठीक हो जाएगा। उन्होंने राजा साहब के लिए नुसखा लिखा और भी हिदायतें लिखी। राजा साहब ने जैसे नींद से जागकर कहा--मुहब्बत को भी देखते जाइए, फैसो है। 'देखता जाऊंगा, सरकार ।' वे नीचे उतरे । अांखों ही मे बातें हुई। मुहब्बत ने कहा- 'हम मारे जाएंगे, डाक्टर साहब !' 'फिक्र मत करो, हिम्मत रखो।' 'लेकिन मैं यह काम नहीं कर सकती । आज यह दवा मैं नहीं दूंगी।' 'तो मैं कहूंगा कि मुहब्वत ने राजा साहब को जहर दिया है। जानती हो मैं डाक्टर हूं, चाहूं तो अभी आधे घंटे में हथकड़ियां डलवा दूगा !' डाक्टर की आंखों में प्रतिहिंसा व्यक्त हो उठी। मुहब्बल ने क्रुद्ध होकर कहा--तुम भी नहीं वचोगे डाक्टर ; मैं कहूंगी तुमने ही जहर लाकर दिया था। डाक्टर ने हंसकर कहा-ऐसा कहते ही यह साबित हो जाएगा कि तुमने जहर दिया। अब तुम्हें यह सावित करना रह जाएगा कि डाक्टर ने दिया। वह तुम कैसे साबित करोगी? मुहब्बत ने प्रांखो मे आंसू भरकर कहा-डाक्टर, रहम करो ! मैं बदनसीब औरत हूं। 'तो मैं जो कहता हूं करो। वह सेफ खोलो, जितनी रकम इस बैग में आती है, भर दो । मैं तब तक बाहर देखता हूं कोई श्राता तो नहीं । मगर पहले सारी ज्वैलरी वैग में रख दो। डाक्टर ने बाहर की ओर मुह फेरा, और मुहब्बत ने कांपते हाथों से सेफ को छुआ। लाखों रुपयों की ज्वैलरी और नोट डाक्टर के बैग में भरकर जब मुहब्बत ने डाक्टर के हाथ में बैग दिया तो सूखे मुंह से उसकी ओर देखकर कहा-और पाप डाक्टर, मेरे साथ दगा न करोगे, सब हजम न कर जानोगे, इसीका क्या भरोसा है ? एक कुटिल हास्य लाकर डाक्टर ने कहा-~-इत्मीनान रखो मुहब्बत, हमारी- तुम्हारी मुहब्बत इसके बीच में है। एक प्रकार से बैग उसने झपट लिया