पृष्ठ:मेरी प्रिय कहानियाँ.djvu/२७०

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रजवाड़ो की कहानिया मुहब्बत ने कहा-और गंगा और कुरान ? 'हां, हां वह भी । लो आज की खुराक'-डाक्टर ने एक छोटी सी पुडिया उसकी ठण्डी बर्फ-सी उंगलियों मे पकड़ा दी। डाक्टर चला गया और मुहब्बत मूर्छित-सी होकर जमीन पर गिर गई । राजा साहब की हालत बहुत बदतर हो गई । उनमे सर्वथा ज्ञान का लोप हो गया। बदहवासी में वे अंटशंट बकने लगे। होंट उनके काले और प्रांखें लाल हो गई। अपने दोनों हाथों की उंगलियों से वह कुछ ताने-बाने-से बुनने लगे। खाना-पीना समाप्त हो गया । गर्म पानी में घोलकर मीठी' शराब देने से उन्हें कुछ चैतन्य प्राता था । मुहब्बत और डाक्टर ने राजा साहब की सेवा मे दिन- रात एक कर दिया। रियासत भर में मुहब्बत एक आदर्श सती स्त्री की भाति प्रशसित हो गई--कलिकाल में मुसलमान वेश्या होकर ऐसी सेवा-परायण स्त्री भला कहा मिल सकती है ? और डाक्टर ने तो सत्युग का उदाहरण उपस्थित कर दिया। रात-रात भर जव सव नौकर-चाकर, परिजन थक जाते, ये दोनों ही राजा की मेवा में जागते रहते-उन्हें निर्विघ्न-संदेहरहित मृत्यु के द्वार तक अत्यन्त सफलता से पहुंचाते जाते थे। सेफ खाली हो चुका था। और अव मुमूर्षु रोगी के पास प्रांतों और इंगितो मे इन दोनों व्यक्तियों की जो बातचीत होती उसका मूल विषय होता वह धन जो 'चुरा लिया गया था और अब डाक्टर के पेट में पहुंच चुका था। मुहब्बत घबराकर सूखे होंठों से कहती–देखना, दगा न करना, तुम्हारे विश्वास पर यह सब किया है । डाक्टर अांखों में ही जवाब देते-इत्मीनान रखो, सब ठीक हो जाएगा। परन्तु राजा साहब की अवस्था जब सांघातिक रूप धारण कर गई तो डाक्टर ने कुंवर साहब से कहा-अब तो मेरे बूते की वात रही नहीं है , किसी बड़े डाक्टर की सहायता की आवश्यकता है । कल न जाने क्या हो जाय तो मेरा मुह काला होगा । मैं तो जो सेवा करनी थी, कर चुका। भला डाक्टर की सेवा में संदेह किसे था ? राजा साहब को सदर शहर में अस्पताल ले जाया गया। वहां अनेक धुरं- घर डाक्टर उनकी देखभाल करने लगे। परन्तु रोग का कारण किसीकी समझ में नहीं आ रहा था । रोग बढता जा रहा था। और अब राजा साहब की किसी